चुनाव से ऐन पहले RJD को बड़ा झटका, रघुवंश प्रसाद ने एम्स से लालू को अपना इस्तीफा भेजा

बिहार में चुनाव से ऐन पहले राष्ट्रीय जनता दल को बड़ा झटका लगा है, पार्टी के वरिष्ठ नेता ने लालू प्रसाद यादव को अपना इस्‍तीफा भेज दिया है ।

New Delhi, Sep 10: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हैं । आरजेडी इस बार सत्‍ता में आने को बेचैन है, और कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती । लेकिन इस बार भी राहें आसान नहीं रहने वालीं । चुनाव से ऐन पहले पार्टी में बड़ी खलबली मच गई है । एक वरिष्‍ठ नेता ने पार्टी को अलविदा कह दिया है । 32 साल के साथ को अब तोड़ दिया है । ये वरिष्‍ठ नेता कोई और नहीं आरजेडी के पूर्व उपाध्‍यक्ष रहे रघुवंश प्रसाद हैं ।

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एम्‍स बेड से ही भेज दिया इस्तीफा
आरजेडी के पूर्व उपाध्यक्ष रहे रघुवंश प्रसाद सिंह ने एम्स के बेड से ही पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को अपना इस्तीफा भेज दिया है । आपको बता दें रघुवंश प्रसाद सिंह, आरजेडी के उपाध्यक्ष पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके थे । बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव को भेजी गई चिट्ठी में रघुवंश प्रसाद सिंह ने लिखा कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के बाद 32 वर्षो तक आपके पीछे खड़ा रहा लेकिन अब नहीं । पार्टी, नेता, कार्यकर्ता और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, लेकिन मुझे क्षमा करें ।

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नाराज चल रहे थे रघुवंश प्रसाद
पिछले कुछ समय रघुवंश प्रसाद आरजेडी से खुश नहीं थे । पार्टी में रामा सिंह की एंट्री और तेजस्वी यादव का मनमाना रवैया उन्‍हें परेशान कर रहा था । आरजेडी में उन्‍हें मनाने का दौर चल रहा था । लेकिन आज आखिरकार उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया । रघुवंश प्रसाद का पार्टी से इस्‍तीफा देना वो भी ठीक चुनाव से पहले आरजेडी के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है । रघुवंश प्रसाद बड़ राजपूत नेता हैं, आरजेडी को अगड़ी जाति में सबसे ज्यादा समर्थन इसी समाज से प्राप्‍त है ।

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एम्‍स में भर्ती है रघुवंश प्रसाद
आरजेडी के दिग्‍गज नेता रहे रघुवंश प्रसाद सिंह बीमार चल रहे हैं, वो कोरोना से ग्रसित हैं और उनका इलाज दिल्‍ली के एम्‍स में चल रहा है । वहीं से उन्होंने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को हाथ से पत्र लिख कर इस्तीफा की सूचना दी है । रघुवंश प्रसाद के इस कदम के बाद राजनीतिक खेमों में हलचल मच गई है, जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि रघुवंश बाबू का इस्तीफा आरजेडी के ताबूत में आखिरी कील है । जिस दमघोंटू वातावरण में वो खुद को असहज महसूस कर रहे थे, उसकी परिणति यही होनी थी । अंततः उन्होंने दलदल से निकलने का फैसला किया और यह निर्णय स्वागत योग्य है ।