रामविलास पासवान के निधन से बदल सकता है चुनावी खेल, 5 जिलों में नीतीश को सबसे ज्यादा नुकसान!
लोजपा नेता रामविलास पासवान के निधन से खेल तो सभी दलों का खराब होगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान जदयू को उठाना पड़ेगा।
New Delhi, Oct 10 : बिहार विधानसभा में कुल 40 सीटें एससी/एसटी के लिये सुरक्षित है, इन पर कभी लोजपा का दबदबा नहीं रहा, लेकिन इस बार बिहार के सबसे बड़े दलित नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद ये कयास लगाये जा रहे हैं कि चिराग को दलितों के साथ ही अन्य मतदाताओं के सहानुभूति वोट मिलेंगे, बिहार के 38 में से 5 जिले हैं, जहां चिराग को अधिक लाभ मिल सकता है। ये जिले हैं खगड़िया, समस्तीपुर, जमुई, वैशाली और नालंदा, खगड़िया पासवान का पैतृक जिला है, यहां के अलौली विधानसभा से रामविलास पहली बार विधायक चुने गये थे, इसके अलावा वैशाली, समस्तीपुर, जमुई और नालंदा ऐसे जिले हैं, जहां दलित वोटों की संख्या ज्यादा होने के कारण इस बार चुनाव में चिराग को सहानुभूति लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है, चिराग ने जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं, इसका नुकसान नीतीश कुमार की पार्टी हो हो सकता है।
सभी दलों का खेल खराब
लोजपा नेता रामविलास पासवान के निधन से खेल तो सभी दलों का खराब होगा, लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान जदयू को उठाना पड़ेगा, क्योंकि कुछ दिन पहले ही लोजपा ने एनडीए से अपना नाता तोड़ते हुए कहा था कि लोजपा जदयू के खिलाफ हर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी, इस बीच केन्द्रीय मंत्री और लोजपा संस्थापक राम विलास पासवान का निधन हो गया।
16 फीसदी है महादलित और दलित की आबादी
बिहार में अभी महादलित और दलित वोटरों की आबादी 16 फीसदी के करीब है, 2010 विधानसभा चुनाव से पहले तक रामविलास पासवान इस जाति के सबसे बड़े नेता रहे हैं, दलित बहुत सीटों पर उनका असर भी दिखता था, लेकिन 2005 विधानसभा चुनाव में लोजपा ने नीतीश का साथ नहीं दिया था, जिसे खार खाये नीतीश ने दलित वोट बैकों में सेंधमारी के लिये बड़ा खेल कर दिया था, 22 में से 21 दलित जातियों को उन्होने महादलित घोषित कर दिया था, लेकिन इसमें दुसाध जाति को शामिल नहीं किया था।
महादलितों की आबादी 10 फीसदी
नीतीश के इस खेल से उस समय महादलितों की आबादी 10 फीसदी हो गई थी, पासवान जाति के वोटरों की संख्या 4.5 फीसदी रह गयी थी, 2009 लोकसभा चुनाव में नीतीश के इस मास्टरस्ट्रोक का असर रामविलास पर दिखा था, वो खुद चुनावी मैदान में चित हो गये थे, जिसके बाद रामविलास 2014 चुनाव में एनडीए में वापस लौटे, नीतीश उस समय एनडीए से अलग थे।