चिराग पासवान के असंभव नीतीश के पीछे कौन? सियासी गलियारों में नई चर्चा शुरु

चिराग पासवान ने एक के बाद एक ट्वीट किये और कई सवाल पूछे, साथ ही बिहार की जनता को संदेश भी दिये, लोजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि पिछले पांच साल में बिहार में अधिकारियों का राज रहा है।

New Delhi, Oct 19 : जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान की तल्खी नीतीश कुमार के प्रति बढती जा रही है, चिराग ने नीतीश पर अब तक का सबसे बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि नीतीश सभी बातों के 15 साल का बताते हैं, जबकि हकीकत ये है कि पिछले पांच साल में उनकी कोई उपलब्धि नहीं है, उनके मंत्री और विधायक पिछले पांच साल का हिसाब दें, चिराग ने कहा कि नीतीश और बिहार को बेबसी से निकालने के लिये कड़े फैसले होने होंगे, इसके साथ ही चिराग ने नये हैशटैग असंभव नीतीश की शुरुआत की है, इसका मतलब है कि इस बार सत्ता में आना नीतीश के लिये आसान नहीं है।

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अफसरशाही
चिराग पासवान ने एक के बाद एक ट्वीट किये और कई सवाल पूछे, साथ ही बिहार की जनता को संदेश भी दिये, लोजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि पिछले पांच साल में बिहार में अधिकारियों का राज रहा है, सात निश्चय में कोई भी निश्चय पूरा नहीं हुआ, उन्होने कहा कि नीतीश और उनके विधायक तथा मंत्री पिछले पांच साल में हुए कार्यों का ब्यौरा दें, इसके बाद आगे लिखा, कि आप सभी के स्नेह, आशीर्वाद और साथ में बिहार में जदयू से ज्यादा सीटें लोजपा जीतेंगी और बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के संकल्प के साथ नया बिहार और युवा बिहार बनाएगी।

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पीके की भूमिका
सवाल उठ रहा है कि आखिर जो चिराग पासवान कुछ महीने पहले तक सीएम नीतीश के साथ थे, बीते लोकसभा चुनाव में खुद की जमुई सीट पर उनसे प्रचार करवा रहे थे, अचानक इतने कैसे बदल गये, राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है, उसके मुताबिक जदयू, बीजेपी और लोजपा के इस तकरार के पीछे प्रशांत किशोर की भूमिका है, वो चिराग को सलाह दे रहे हैं।

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पीके की बड़ी भूमिका
राजनीतिक सूत्रों का दावा है कि चिराग कभी नीतीश के आंख के तारे रहे पीके की सलाह पर काम कर रहे हैं, दरअसल पीके का जदयू से नाता खत्म हो चुका है, वह आधिकारिक तौर पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को राजनीतिक सलाह दे रहे हैं, साथ ही सूत्र का दावा है कि जीतन राम मांझी के नीतीश से जुड़ने के बाद चिराग के कान खड़े हो गये थे, इसके बाद पीके की सलाह पर उन्होने 143 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया, इसमें संदेश दिया कि उनकी पार्टी बिहार में एनडीए से बाहर है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के साथ है।