जन्मदिन विशेष शीला दीक्षित- जिसके लिये कभी जेल गई, वहीं मुद्दा बना टर्निंग प्वाइंट!

शीला दीक्षित के राजनीतिक जीवन में कई मोड़ अहम रहे, जिसमें से दो मोड़ खासतौर पर याद किये जाते हैं, एक 1990 में जब यूपी में मुलायम सरकार थी, तो महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को लेकर शीला दीक्षित ने आंदोलन छेड़ा था।

New Delhi, Mar 31 : दिल्ली की 3 बार लगातार सीएम रही तथा कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित का 2019 में निधन हो गया, राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढाव देखने वाली शीला जी को कुछ जानकार दिल्ली की बेताज मल्लिका कहते हैं, तो कुछ दिल्ली की टीनेजर की तरह चाहने वाली नेता मानते रहे, 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने अनोखा कीर्तिमान ये रचा था कि भारत के किसी भी प्रदेश में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने वाली महिला वो रही ।

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राजनीतिक जीवन में कई मोड़
शीला दीक्षित के राजनीतिक जीवन में कई मोड़ अहम रहे, जिसमें से दो मोड़ खासतौर पर याद किये जाते हैं, एक 1990 में जब यूपी में मुलायम सरकार थी, तो महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को लेकर शीला दीक्षित ने आंदोलन छेड़ा था, तब उन्हें 82 अन्य लोगों के साथ 23 दिनों के लिये जेल में डाल दिया गया था। उलटबांसी ये है कि 2017 में अखिलेश यादव की पार्टी सपा के साथ गठबंधन के बाद शीला दीक्षित ने सीएम पद की दावेदारी छोड़ने का ऐलान किया था। इसी तरह दूसरी उलटबांसी ये है कि 1990 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के विरोध में आंदोलन छेड़ने वाली शीला दीक्षित के कार्यकाल में 2012 में जब निर्भया गैंगरेप हुआ, तो इस कांड के कारण खड़े हुए आंदोलन की वजह से ही उनके हाथों से सत्ता चली गई।

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1962 तक
31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में कपूर परिवार में पैदा हुई शीला दीक्षित ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए किया था, 1962 में उनकी शादी विनोद दीक्षित के साथ हुई, जो स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के पूर्व गवर्नर उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे, आईएएस अधिकारी ससुर उमाशंकर दीक्षित की छत्रछाया में शीला का राजनीतिक सफर एक तरह से शुरु भी हुआ और परवान भी चढा।
1989 से 1998 तक
यूपी के कन्नौज संसदीय सीट से 1984 में संसद पहुंची शीला ने संयुक्त राष्ट्र के महिलाओं को लेकर कमीशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया, फिर 1986 से 1989 तक केन्द्रीय राज्यमंत्री की भूमिका में रही, 1990 में आंदोलन के बाद बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम शीला के जीवन में तब हुआ, जब 1998 के चुनाव में पूर्वी दिल्ली क्षेत्र से बीजेपी के लाल बिहारी तिवारी के हाथों उन्हें शिकस्त मिली, फिर कांग्रेस ने उन्हें राज्य की राजनीति का चेहरा बनाया, गोल मार्केट सीट से विधानसभा चुनाव जीती, और 1998 में दिल्ली की सीएम बनीं।

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2009 और 2010
पहले तो दिल्ली के लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में जांच के केस ने शीला दीक्षित को सुर्खियां दिलाई, लेकिन लोकायुक्त ने उन्हें बरी कर दिया, 2009 में ही हत्या के दोषी करार दिये गये मनु शर्मा को पैरोल दिये जाने के विवाद में शीला दीक्षित घिरी थीं, जिसमें हाईकोर्ट ने भी उनकी भूमिका की आलोचना की थी, फिर 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन के लिये दिल्ली की सूरत बदलने वाले कई कदम उठाये गये थे, लेकिन बाद में शीला दीक्षित पर करप्शन के आरोप लगे थे।
2019 तक
2012 में निर्भया गैंगरेप कांड ने शीला सरकार के खिलाफ असंतोष की भावना बना दी, करप्शन के मुद्दे से अन्ना आंदोलन की उपज अरविंद केजरीवाल ने उन्हें चुनौती दी, फिर 2013 विधानसभा चुनाव में उन्हें हराया, 2019 में एक इंटरव्यू में शीला दीक्षित ने निर्भया केस को अपने राजनीतिक उतार का मोड़ बताते हुए कहा था कि अब भी ऐसे कई कांड होते हैं, आप ज्यादातर रेप की घटनाओं को नजरअंदाज करते हैं, वो सिर्फ एक खबर की तरह होकर रह जाते हैं, लेकिन एक खबर का राजनीतिक स्कैंडल बना दिया गया।