कहानी उस बाहुबली की, जिसके दरबार में फरियादी जमीन पर बैठकर ‘प्रभु’ से कहते थे अपनी बात!

प्रभुनाथ सिंह को छपरा का नाथ भी कहा जाने लगा, राजपूत बिरादरी से आने वाले प्रभुनाथ ने इलाके के साथ-साथ बिहार की राजनीति में ऐसी धाक जमाई कि उन्हें 90 के दशक में सबसे प्रभावशाली जनता दल ने अपनी पार्टी में खींच लिया।

New Delhi, Apr 16 : 80 के दशक में देश धीरे-धीरे जमींदारी प्रथा की जकड़न से दूर जा रहा था, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में जमींदारी की जगह बाहुबली लेने लगे थे, कहीं बंदूक के दम पर तो कहीं जमीन के रसूख पर, कहीं लाठी-डंडों के जोर से तो कहीं दाब दबिश से बाहुबलियों की धमक दिखने लगी थी, नतीजन आजादी के बाद से साफ-सुथरी राजनीति मं दागी बाहुबलियों की एंट्री होने लगी थी।

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डर के साये में वोट
इससे फर्क ये पड़ा कि चुनाव के समय जो उम्मीदवार घर-घर जाकर वोट मांगते थे, वोटर अपनी स्वेच्छा से वोट डालते थे, अब वोटर डर के साये में वोट डालने लगे, ये सब देश के कई हिस्सों के साथ बिहार के महाराजगंज इलाके में भी हो रहा था, दरअसल महाराजगंज सिवान जिले में आता है, सिवान देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का गृह जिले के रुप में भी जाना जाता है।

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राजनीति में एंट्री
1985 में उसी क्षेत्र में एक सीमेंट कारोबारी की एंट्री होती है, जिसने सारण जिले के मशरक सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर ताल ठोक दी, उस हरेन्द्र सिंह के खिलाफ जिसके पिता रामदेव सिंह की हत्या का आरोप उन पर लगा था, दरअसल हम बात कर रहें हैं एक जमाने के दबंग और बाहुबली नेता प्रभुनाथ सिंह की, जिनके बारे में कहा जाता था कि वो झुकना नहीं झुकाना जानते हैं, ये प्रभुनाथ सिंह का रसूख ही था, कि एक निर्दलीय उम्मीदवार होने के बावजूद उन्होने जिले के प्रभावशाली व्यक्ति रामदेव सिंह के बेटे को आसानी से चुनाव में धूल चटा दी, यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई।

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छपरा का नाथ
प्रभुनाथ सिंह को छपरा का नाथ भी कहा जाने लगा, राजपूत बिरादरी से आने वाले प्रभुनाथ ने इलाके के साथ-साथ बिहार की राजनीति में ऐसी धाक जमाई कि उन्हें 90 के दशक में सबसे प्रभावशाली जनता दल ने अपनी पार्टी में खींच लिया, अर्श से ऊंचाइयों को छू रहे प्रभुनाथ सिंह ने जनता दल को निराश नहीं किया और 90 के चुनाव में भारी मतों से जीते, प्रभुनाथ सिंह को विधायक अशोक सिंह से अदावत थी, सारण में अशोक सिंह पर कुछ बंदूकधारियों ने फायरिंग कर दी, हालांकि वो बच गये, लेकिन राजनीतिक गलियारों में ये कहा गया, कि प्रभुनाथ ने उन पर हमला करवाया, जल्द ही जनता दल से उनका मोहभंग हो गया, जनता दल ने 90 में आये मंडल कमीशन को समर्थन कर दिया, उसी समय प्रभुनाथ ने पार्टी से नाता तोड़कर एक और बाहुबली आनंद मोहन के साथ मिलकर बिहार पीपल्स पार्टी बनाई।

चुनाव में मिली हार
1995 का वो साल था, जब बिहार में मंडल कमीशन के बाद अगड़ी तथा पिछड़ी जातियों की राजनीति शुरु हो गई, दोनों एक-दूसरे को दबाने में लगे थे, लेकिन इस वर्चस्व की लड़ाई में पिछ़ड़ी जातियों ने अगड़ी जातियों पर फतह हासिल की, इसी का नतीजा ये रहा कि जिस मशरक सीट पर प्रभुनाथ सिंह का दबदबा था, उस पर अशोक सिंह ने उन्हें हराया।