भारत में ऑक्सीजन का उत्पादन अभी भी डिमांड से ज्यादा, फिर क्यों हो रही है किल्लत ? समझें

भारत में ऑक्सीजन की किल्‍लत से कई मरीज कोविड से लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं, लेकिन हैरत इस बात की इसका उत्पादन अभी भी डिमांड से ज्यादा, फिर क्यों किल्लत की खबरें आ रही हैं । आगे पढ़ें ।

New Delhi, Apr 22: दिल्ली के अस्‍पतालों में ऑक्सीजन की किल्‍लत देखने को मिल रही है, सप्लायर के पास पहुंचे लोग बेचैन है । कोई अस्‍पताल के लिए तो कोई घर में मरीज़ के लिए ऑक्सीजन चाहता है । लेकिन राजधानी में इस प्राणदायी गैस का मिलना मुश्किल होता जा रहा है । गंभीर रूप से पीड़ितों के लिए ऑक्सीजन जुटाने के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं । ऐसे में सरकार ने अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई बढ़ाने के लिए उद्योगों को ऑक्सीजन देने पर रोक लगा दी है ।

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सरकार ने लिया है अहम फैसला
अस्‍पतालों में ऑक्‍सीजन की किल्‍लत को देखते हुए अब केवल 9 जरूरी इंडस्ट्रीज को ही ऑक्सीजन सप्लाई की जा रही है । रिलायंस, टाटा स्टील, सेल, जिंदल स्टील ने कोविड के इलाज के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई शुरू कर दी है, वहीं खाद बनाने वाली सहकारी समिति IFFCO भी ऑक्सीजन के प्लांट लगा रही है । इन सभी जगहों से अस्पतालों को मुफ्त ऑक्सीजन की सप्लाई होगी । इसके साथ ही जरूरतों को पूरा करने के लिए 50,000 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन के आयात करने का फैसला लिया गया है।

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बढ़ गई है मांग
दरअसल, कोरोना की इस दूसरी लहर से पहले लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन यानि LMO की मांग औसतन 700 मीट्रिक टन प्रतिदिन थी । कोरोना की पहली लहर में ये मांग 2800 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई, और दूसरी लहर में अब ये 5000 मीट्रिक टन तक पहुंच गई है । इस बीच सबसे अहम बात ये है कि पूरी क्षमता पर भारत का रोज़ाना ऑक्सीजन उत्पादन उसकी सप्लाई से कहीं अधिक है । 12 अप्रैल के आंकड़ें देखें तो देश में रोज़ाना ऑक्‍सीजन की उत्पादन क्षमता 7287 मीट्रिक टन है और रोज़ की खपत 3842 मीट्रिक टन । मांग 5000 मीट्रिक टन पहुंचने के बावजूद उत्पादन क्षमता से कम है ।

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यहां है समस्‍या
अब परेशानी ये है कि देश में मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का मौजूदा स्टॉक 50 हज़ार मीट्रिक टन है । इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल ग्रेड में परिवर्तित करने के लिए उसे 93 प्रतिशत तक शुद्ध करना होता है, लेकिन असल दिक्कत है ऑक्सीजन को निर्धारित अस्पतालों तक कैसे पहुंचाया जाए । इसमें जो समस्‍याएं आ रही हैं उनमें पहला ये कि लिक्विड ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट करने के लिए उतनी संख्या में क्रायोजेनिक टैंकर उपलब्ध नहीं हैं ।  दूयरा ये कि संक्रमण का पैमाना बड़ा है और एक साथ कई अस्पतालों में कमी हो रही है । वहीं देश में सिलेंडर और इसके साथ में इस्तेमाल के लिए लगने वाले उपकरण की किल्लत है, इनके अभाव में कई अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है ।