शहाबुद्दीन की मौत पर क्यों याद आ रहे चंदा बाबू! पढ़ें सीवान टू तिहाड़ की कहानी

शहाबुद्दीन के निधन के बाद से उससे जुड़ी खबरों में चंदा बाबू प्रमुखता से चर्चा में हैं, क्‍या था वो तेजाब कांड जिसका खौफ आज भी उस दौर के लोगों में दिखाई पउ़ता है ।

New Delhi, May 01: उस दौर की यादें बिहार में आज भी रूह कंपा देती हैं जिस दौर में सीवान का बहुचर्चित तेजाब कांड हुआ था । लालू-राबड़ी के शासनकाल में पूरा बिहार बाहुबलियों के दबदबे में जी रहा था । उस दौर में मो. शहाबुद्दीन के नाम से पूरा इलाका कांपता था । उसके बारे में कहा जाता था कि खौफ का दूसरा नाम शहाबुद्दीन है, उसके आगे इंसानी जान की कोई कीमत नहीं । सीवान की धरती पर शहाबुद्दीन का नाम लेना गुनाह था, उसे सब ‘साहेब’ बुलाते थे । खुद शहाबुद्दीन को ‘सीवान के साहेब’ कहलाना बड़ा पसंद था ।

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चंदा बाबू की यादें भी हुईं ताजा
लेकिन शहाबुद्दीन की आज चर्चा है तो उस व्यक्ति को भी याद किया जा रहा है जिसने सीवान की धरती से इस खौफ को खत्म करने में अहम योगदान दिया । अपने तीन बेटों को खोने के बावजूद वो अड़े रहे, सीवान के साहेब को तिहाड़ जेल की ऐसी यात्रा करवाई कि अब वहां से उसकी मौत की खबर ही बाहर आई है । यहां बात हो रही हैं चंदा बाबू की, चंदेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू ने ही शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की हिममत रखी और उसे तिहाड़ जेल पहुंचाकर ही दम लिया ।

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दो बेटों को तेजाब में नहलाकर मार डाला गया, एक को गोली मारी
दरअसल सीवान में हुए चर्चित तेजाब कांड के खिलाफ चंदा बाबू ने ही लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद शहाबुद्दीन पर एक्शन हुआ । शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटे ही इस बहुचर्चित तेजाब हत्याकांड की बलि चढ़े थे । जबकि उनके तीसरे बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई । इसी तेजाब हत्याकांड के मुख्य गवाह चंदा बाबू ही जिंदा बचे थे । उन्‍होंने भी हार नहीं मानी, शहाबुद्दीन को जेल तक पहुंचा कर ही दम लिया ।

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ये था मामला
चंदा बाबू सीवान के जाने-माने व्‍यवसायी थे, साल  2004 में जब कुछ बदमाशों ने उनसे रंगदारी मांगी तो उन्होंने देने से इनकार कर दिया था । इस इनकार के बाद से चंदा बाबू की जिंदगी में सब बदल गया । चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश, सतीश और राजीव का अपहरण कर लिया गया, चंदा बाबू के बेटों की बदमाशों से कहासुनी हुई और बदमाशों ने चंदा बाबू के दोनों बेटों पर तेजाब डाल दिया । मामले का चश्मदीद चंदा बाबू का छोटा बेटा राजीव किसी तरह बदमाशों की गिरफ्त से अपनी जान बचाकर भाग निकला । 2014 में उसकी भी सालों बाद गोली मारकर हत्‍या कर दी गई ।

लालू राबड़ी का था शासन
बता दें कि जिस दौर में यह बहुचर्चित तेजाब कांड हुआ था उस वक्त बिहार में लालू-राबड़ी का शासनकाल था और बिहार में बाहुबलियों का दबदबा । लेकिन साल 2005 में सत्ता बदली, नीतीश सरकार ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई शुरू की । चंदा बाबू भी करीब डेढ़ दशक तक मोहम्मद शहाबुद्दीन से लड़ते रहे और पूर्व बाहुबली सांसद को सलाखों के पीछे पहुंचाने में कामयाब रहे । शहाबुद्दीन ने चंदा बाबू का पूरा परिवार उजाड़ दिया, उन्‍हें लोगों ने लाख समझाया लेकिन वो इंसाफ की जंग लड़ते रहे । 16 दिसंबर, 2020 को चंदा बाबू की मौत हो गई ।