राजीव गांधी से वाजपेयी जी तक की रही खास, आज BJP से छत्तीस का आंकड़ा, ममता बनर्जी का सियासी सफर
राजनीति में ममता बनर्जी की गिनती एक जुझारु नेता के रुप पर होती हैं, उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थी, उनका निधन ममता के बचपन में ही हो गया था।
New Delhi, May 02 : पश्चिम बंगाल के चुनावी घमासान के बीच सत्ताधारी टीएमसी और बीजेपी के बीच सीधा टकराव नजर आ रहा है, ममता दीदी की पार्टी जहां बंगाल की सत्ता में बने रहने की कोशिश में है, तो वहीं बीजेपी ने टीएमसी को हटाने के लिये पूरा जोर लगा दिया था, चुनावी दंगल में किसकी जीत और किसकी हार होगी, इसका पता कुछ देर में चल जाएगा, जब नतीजों की आधिकारिक घोषणा होगा, इस सियासी लड़ाई पर पूरे देश की नजरें टीकी है, जो देश की राजनीति को आने वाले दिनों में एक नई दिशा भी दे सकता है।
15 साल की उम्र में कांग्रेस से जुड़ी
बंगाल चुनाव के बीच ममता बनर्जी के सियासी सफर पर नजर डालें, तो वो सिर्फ 15 साल की उम्र में कांग्रेस से जुड़ी थी, अपनी मेहनत, लगन और जुझारु तेवर से उन्होने पहचान बनाई, कांग्रेस से सियासी सफर की शुरुआत करने वाली ममता की गिनती कभी कांग्रेस में राजीव गांधी के भरोसेमंद नेताओं में होती थी, लेकिन फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से दूरियां ऐसी बढी कि अपनी अलग पार्टी बना ली, 13 साल के भीतर इसे उस मुकाम पर पहुंचा दिया, जिसे हासिल करने में पार्टियों को कई साल लग जाते हैं।
टीएमसी के गठन के 13 साल बाद बन गई सीएम
राजनीति में ममता बनर्जी की गिनती एक जुझारु नेता के रुप पर होती हैं, उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थी, उनका निधन ममता के बचपन में ही हो गया था, बताया जाता है कि पिता के निधन के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति डबांडोल हो गई थी, ऐसे में घर वालों की मदद के लिये उन्होने दूध बेचने का काम शुरु किया, कांग्रेस की स्टूडेंट ईकाई से 1970 के दशक में राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाली ममता पार्टी की तेज-तर्रार नेताओं गिनी जाने लगी, हालांकि 1998 में उन्होने अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा फैसला लिया और कांग्रेस से अलग हो गई। अपनी पार्टी के गठन के 13 साल बाद 2011 में वो बंगाल की सीएम बनी, ये चुनाव सिर्फ ममता बनर्जी की जीत के लिहाज से खास नहीं है, बल्कि जिस वामपंथ को हराकर वो सत्ता में आई, उसकी वजह सभी उनकी जीत एक मिसाल बन गई।
बीजेपी की रही करीबी
मां, माटी और मानुष के नारे के साथ बंगाल की सत्ता में आने वाली ममता बनर्जी इससे पहले 29 साल की उम्र में 1984 में सबसे युवा सांसद के तौर पर इतिहास रच चुकी थीं, उन्होने कांग्रेस के टिकट पर दक्षिण कोलकाता सीट से जीत हासिल की थी, फिर कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रही, आगे चलकर वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहीं, वाजपेयी जी ने उन्हें रेलवे जैसा मंत्रालय सौंपा था।