पंकज त्रिपाठी- एक मामूली किसान का बेटा, जिसने बताया सरल एक्टिंग से भी दिल जीता जा सकता है

पंकज त्रिपाठी मूल रुप से बिहार के गोपालगंज के बेलसंद गांव के रहने वाले हैं, वो गांव में ही पैदा हुए और यहीं पले-बढे, गांव में रंग मंच और छोटे-मोटे नाटकों के जरियो लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाते रहे।

New Delhi, Sep 16 : गैंग्स ऑफ वासेपुर से लोगों के दिलों में छा जाने वाले एक्टर की शुरुआत हुई एक मामूली किसान के बेटे के रुप में, फिल्मों में आने से पहले वो पिता के साथ खेतों में काम करते थे, वासेपुर के बाद जिस तरह उन्होने मिर्जापुर, सेक्रेड गेम्स जैसे वेब सीरीज के जरिये खुद को स्थापित किया, वो कोई नहीं भूल सकता, उनकी एक्टिंग की तरह ये बात भी उतनी ही खरी है कि वो फिल्मों में आने से पहले किसानी करते थे।

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पटना पहुंचने के बाद जिंदगी बदली
पंकज त्रिपाठी मूल रुप से बिहार के गोपालगंज के बेलसंद गांव के रहने वाले हैं, वो गांव में ही पैदा हुए और यहीं पले-बढे, गांव में रंग मंच और छोटे-मोटे नाटकों के जरियो लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाते रहे, इन नाटकों में उन्होने ज्यादातर महिलाओं के किरदार किये, इसके बाद पढाई के लिये पटना आ गये, यहीं से उनकी जिंदगी ने फिल्मी मोड़ लिया, वो नाटक देखने के लिये साइकिल से जाया करते थे, 12वीं क्लास में उन्होने अंधा कानून नाटक देखा, इस नाटक में एक्टर प्रणिता जायसवाल के काम ने उन्हें रुला दिया, फिर उन्हें थिएटर इतना भाया कि पटना में जहां कोई होता, वहां पहुंच जाते, 1996 में वो खुद एक कलाकार बन गये।

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14 साल संघर्ष
पीटीआई से बात करते हुए पंकज त्रिपाठी ने बताया मैं रात में एक होटल के किचन में काम करता और सुबह थिएटर, करीब ऐसा 2 साल चला, उसी समय उन्होने एनएसडी में एडमिशन लेने की सोची, Pankaj Tripathi लेकिन यहां कम से कम ग्रेजुएशन योग्यता चाहिये थे, त्रिपाठी ने ये मुश्किल भी पार कर ली, उन्होने हिंदी लिटरेचर से ग्रेजुएशन किया, इसी दौरान वो होटल में काम भी कर रहे थे, दोपहर में नाटक भी, ये उनका जुनून ही थी, जिसने उन्हें वो इन मुश्किलों से पार करने की हिम्मत दी।

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जेल तक गये
कॉलेज में वो एबीवीपी के साथ जुड़े, छात्र आंदोलन का हिस्सा बनने के लिये जेल भी गये, जेल की इस दुनिया ने उनके लिये नई तरह के दरवाजे खोल दिये, 16 अक्टूबर 2004 का वो दिन था, जब पंकज एनएसडी से पास आउट होकर मुंबई पहुंचे, उनकी जेब में 46 हजार रुपये थे, दिसंबर तक इन पैसों में सिर्फ 10 रुपये बचे। उस समय उनकी पत्नी का जन्मदिन था, उनके पास केक या गिफ्ट के लिये पैसे नहीं थे, पंकज ने खुद कहा कि उनके कोई बड़े सपने नहीं थे, वो सब छोटे रोल्स पाकर रेंट चुकाना चाहते थे, लेकिन मेहनत से वासेपुर मिली और फिर सब सपने जैसा हो गया।