पढाई में नहीं लगता था मन, 8 बार असफल होने के बाद क्रैक किया UPSC, दिलचस्प है सक्सेस स्टोरी

वैभव ने सिविल सेवा में जाने का फैसला तो कर लिया, लेकिन ये सफर उनके लिये आसान नहीं था, सबसे पहले तो उन्हें अपने इस फैसले पर लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।

New Delhi, Nov 01 : दिल्ली के रहने वाले वैभव छाबड़ा एक साधारण लोअर मिडिल क्लास परिवार से नाता रखते हैं, उनकी शुरुआती पढाई दिल्ली से ही हुई, आमतौर पर ये माना जाता है कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले लोग पढाई में होशियार होते हैं, हालांकि वैभव का मामला इसके बिल्कुल उलट था, उन्हें पढाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, किसी तरह उन्होने नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट से 56 प्रतिशत अंकों के साथ बीटेक की डिग्री हासिल की थी, बीटेक के बाद वैभव ने एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में फिजिक्स पढाना शुरु कर दिया था।

Advertisement

इसके लिये नहीं बने हैं
वैभव को कुछ समय तक नौकरी करने के बाद ये एहसास हुआ कि वो इसके लिये नहीं बने हैं, उन्होने अपने जीवन में कुछ बड़ा और बेहतर करने का विचार बनाया, फिर नौकरी छोड़ दी, हालांकि उन्होने दोबारा बीएसएनएल में नौकरी शुरु कर दी, लेकिन फिर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी का मन बनाने के बाद वैभव ने ये नौकरी भी छोड़ दी थी।

Advertisement

सिविल सेवा में जाने का फैसला
वैभव ने सिविल सेवा में जाने का फैसला तो कर लिया, लेकिन ये सफर उनके लिये आसान नहीं था, सबसे पहले तो उन्हें अपने इस फैसले पर लोगों की नकारात्मक प्रतिक्रिया मिली, लेकिन वैभव अपनी बात पर डटे रहे, IAS उनके इस फैसले पर उनके परिजनों ने भी भरपूर सहयोग किया, जहां यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे लोग दिन में 7-8 घंटे की पढाई करते हैं, वहीं वैभव के लिये 1-2 घंटे पढना भी मुश्किल था, ऐसे में उन्होने हर आधे घंटे पर थोड़ी देर का ब्रेक लेना शुरु कर दिया, इसी तरह धीरे-धीरे पढाई में उनकी रुचि बढने लगी, साथ ही पढाई का समय भी।

Advertisement

हो गया एक्सीडेंट
इसी दौरान वैभव के साथ एक भयानक हादसा भी हो गया, एक एक्सीडेंट की वजह से उन्हें करीब 8 महीने के लिये बेड रेस्ट पर रहना पड़ा था, इस मुश्किल समय में भी वैभव ने हिम्मत नहीं हारी,  लेटे-लेटे पढाई करते रहे, वैभव के कठिन परिश्रम और लगन का ये नतीजा रहा, कि 2018 में उन्होने आईएएस में 32वीं रैंक हासिल की, इस कामयाबी से पहले वैभव को 8 बार असफलता का सामना करना पड़ा, लेकिन हार मानने के बजाय उन्होने हमेशा बेहतर करने की कोशिश की।