टूटे हाथ की भी नहीं की फिक्र, दूसरे से थामी मशीन गन… ऐसे थे देश के पहले परमवीर चक्र विजेता

देश के पहले परम वीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा की कहानी आपको गर्व से भर देगी । एक ऐसा वीर जिसे मौत का कोई खौफ नहीं था ।

New Delhi, May 04: देश के अमर सपूतों में मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम शान से लिया जाता है । वो भारत के पहले परम वीर चक्र विजेता थे । मेजर  चौथी कुमाऊं रेजीमेंट की डेल्टा कंपनी के अधिकारी थे । उन्‍हें पाकिस्तानी घुसपैठ के समय श्रीनगर एयरबेस की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था । 22 अक्टूबर 1947 को सूचना मिली थी की पाकिस्तान घुसपैठ करने वाला है । 23 अक्टूबर 1947 की सुबह ही दिल्ली के पालम एयरपोर्ट से सैनिकों और हथियारों को श्रीनगर पहुंचा दिया गया, 31 अक्टूबर को मेजर सोमनाथ शर्मा भी श्रीनगर पहुंचा दिए गए । तब वो पहले से ही घायल थे, हॉकी खेलते समय उनका हाथ फ्रैक्चर हो गया था ।  डॉक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन वो देशभक्त हाथ में प्‍लास्‍टर चढ़ाए ही युद्धक्षेत्र में जाने को उतावला था । उन्‍होंने अनुमति मांगी, वो मिल भी गई और उन्हें उनकी यूनिट का कमांड सौंप दिया गया।

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मेजर शर्मा को थी खबर, कहां से होगा हमला?
मेजर शर्मा को सीनियर्स की ओर से बताया गया था कि 2 नवंबर 1947 को पाकिस्तानी दुश्मन श्रीनगर एयरफील्ड से कुछ किलोमीटर दूर बडगाम तक पहुंच गए हैं । 161 इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर एलपी बोगी सेन के आदेश पर मेजर शर्मा और 50 जवानों की उनकी कंपनी बडगाम रवाना हो गई है ।  3 नवंबर 1947 की अलसुबह मेजर शर्मा और टीम बडगाम पहुंचे । इसके बाद उन्होंने कंपनी को कुछ टुकड़ों में बांटकर मोर्चा लेने के लिए पोजिशन ले ली । मेजर शर्मा ने अपने अनुभव से अंदाजा लगाया कि ये हलचल ध्यान भटकाने के लिए है । असली हमला तो पश्चिम दिशा से होने वाला है । मेजर की ये गणित सही निकली, दोपहर ढाई बजे 700 लश्कर कबिलाइयों ने हमला किया । उन्होंने 50 जवानों की टुकड़ी पर ताकतवर मोर्टारों के गोले दागे । मेजर शर्मा और उनके साथी जवान तीन तरफ से घिर गए थे ।

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एक हाथ में प्लास्टर, दूसरे में मशीन गन
एक हाथ में प्लास्टर लगा होने के बावजूद मेजर शर्मा पोस्ट पर दौड़-दौड़कर सैनिकों की हौसला आफजाई कर रहे थे । बीच-बीच में वो दुश्मन पर गोलियां भी बरसा रहे थे । उनकी फॉरवर्ड प्लाटून खत्म हो चुकी थी । लेकिन बाकी सैनिकों ने मेजर शर्मा को हौसले को देखते हुए जंग जारी रखी । इस बीच मेजर शर्मा ने मुख्यालय को एक संदेश भेजा, बताया कि हम संख्या में बहुत कम हैं और दुश्मन हमसे सिर्फ 45-46 मीटर की दूरी पर है । भयानक गोलीबारी के बीच हम अपनी जगह से एक इंच भी नहीं खिसकेंगे । हालांकि इसके थोड़ी देर बाद ही मेजर सोमनाथ शर्मा एक मोर्टार विस्फोट में शहीद हो गए । वो आखिरी सांस तक लड़ते रहे । उन्‍होंने ना तो श्रीनगर एयरबेस जाने दिया और न ही कश्मीर हाथ से छूटने दिया ।

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