नाम, पावर या पैसा, प्रशांत किशोर को क्या करती है प्रभावित, क्या है सफलता के मायने?

प्रशांत किशोर ने कहा मैं कुछ असाधारण नहीं सोचता हूं, लेकिन लोगों के लिये बेहतर और तरक्की वाला काम करना चाहता हूं, उन्होने कहा कि वो महात्मा गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी से प्रभावित हैं।

New Delhi, May 12 : चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का मानना है कि जीवन में सफलता का मतलब पैसा, नाम या पावर हासिल करना नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन में खुशियां लाने में आप क्या योगदान कर सकते हैं, ये भी है, उन्होने कहा कि सभी आम लोगों की तरह मैं भी एक मामूली इंसान हूं, लेकिन मेरे लिये सफलता के मायने इस पर निर्भर करता है कि आम लोग मुझसे और मेरे काम से कितना प्रभावित हैं, आप को कोई करिश्माई व्यक्तित्व की आवश्यकता नहीं है, लेकिन लोगों के जीवन में करिश्मा करने की सोच जरुर होनी चाहिये।

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कुछ असाधारण नहीं सोचता
इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में प्रशांत किशोर ने कहा मैं कुछ असाधारण नहीं सोचता हूं, लेकिन लोगों के लिये बेहतर और तरक्की वाला काम करना चाहता हूं, उन्होने कहा कि वो महात्मा गांधी और लाल कृष्ण आडवाणी से प्रभावित हैं, दोनों नेताओं के काम में वो बात झलकती है, जो मेरे लिये सफलता के मायने हैं। उन्होने कहा भारत में चुनाव से पहले हर नेता कहता है कि वो और उसकी पार्टी भारी बहुमत से जीतने जा रही है, लेकिन चुनाव हारने के बाद कहते हैं कि मैं इसलिये हार गया क्योंकि मैं लोगों के बीच नहीं पहुंच सका, मेरे बारे में लोगों ने गलत धारणा बना ली थी, मैं बिल्कुल जीत ही रहा था कि बाद में सबकुछ हिंदू-मुस्लिम होने लगा, जिसकी वजह से मैं हार गया।

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हिंदू-मुस्लिम से हार जीत नहीं
पीके ने कहा कि सिर्फ हिंदू-मुस्लिम ही किसी के लिये जीत-हार तय कर रहा है, ये कहना भी गलत होगा, उन्होने कहा कि मान लीजिए कि सब लोग पोलराइज हो गये, और सब लोगों का भगवाकरण हो गया, Prashant Kishor लेकिन फिर भी बीजेपी ने 38 फीसदी वोट पाया, उन्होने यूपी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 0 फीसदी हिंदू हैं, बीस फीसदी अल्पसंख्यक हैं, आधे लोग मतदान करने जाते हैं, बीजेपी वहां जिताऊ पार्टी है, बीजेपी को 38 फीसदी वोट मिले, अगर ध्रुवीकरण होगा, तो सब वोट बीजेपी को मिलने चाहिये थे, लेकिन बीजेपी आधे से भी कम वोट पा सकी।

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एक कारण
पीके ने कहा पोलराइजेशन की वजह से जीत हार हुई है, ये कहना गलत है, ये एक कारण जरुर है, जिसका असर पड़ता है, लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव का तौर-तरीका अलग होता है, राज्यों के चुनाव में उपक्षेत्रवाद हावी होता है, Prashant-kishor बिहार के चुनाव में ये दिखा कि बिहार पर किसी बिहारी को ही राज करना चाहिये, जबकि केन्द्र के चुनाव में हिंदुत्व, नेशनलिज्म, लाभार्थी और किस हद तक आपको लाभ मिला, इसका प्रभाव दिखा।