शनि का प्रकोप भी नहीं बिगाड़ पाएगा कुछ, आज प्रदोष व्रत में कर लें ये जरुरी काम

मान्यता है कि शिव भक्तों को शनि देव कुछ नहीं कहते, प्रदोष व्रत के दिन किसी भी समय शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

New Delhi, Mar 04 : हिंदू धर्म में प्रदोष काल, मासिक शिवरात्रि तथा सोमवार के व्रत का खास महत्व बताया जाता है, हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है, इस दिन भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा का विधान है, आज 4 मार्च शनिवार को प्रदोष व्रत होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है।

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प्रदोष काल
ज्योतिष के मुताबिक प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इस दिन व्रत करने तथा पूजा-पाठ आदि से भगवान भोले शंकर के साथ शनि देव की कृपा भी मिलती है, मान्यता है कि shiva शिव भक्तों को शनि देव कुछ नहीं कहते, प्रदोष व्रत के दिन किसी भी समय शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

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भगवान शिव चालीसा
दोहा- जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
चौपाई- जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला।।
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के।।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाये।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे।।
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।
तुरन षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी।।

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दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला।।
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई।।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।।
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो।।
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी।।

धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई।।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे।।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।
दोहा- बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो संभार
तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय
दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार।।
कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र।।
। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।

(डिस्क्लेमर- यहां दी गई जानकारियां सामान्य मान्यताओं पर आधारित है, हम इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करते हैं।)