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काम करें टीपू, मौज़ उड़ावें दीपू !

मगर काम पूरा होता उसके पहले ही अखिलेश सरकार चली गई और अब उन काम का उदघाटन योगी जी कर रहे हैं और फालतू का क्रेडिट लूट रहे हैं.

New Delhi, Sep 19 : काफी दिनों बाद अपने शहर कानपुर आना हुआ. अपने तीन ‘के’ (कटियाबाज़ों, खैनी और झाड़े रहो कलेक्टरगंज) के लिए जाने जाने वाले इस शहर की एक अन्य विशेषता भयानक ट्रैफिक जाम है और दूसरी खासियत जगह-जगह पान की पीक से लाल हुई ज़मीन है. लेकिन इस बार स्टेशन से घर जाते हुए मुझे ट्रैफिक जाम नहीं मिला. लोगबाग पिचिर-पिचिर पान या खैनी खाकर थूकते हुए नहीं दिखे. मुझे सुखद आश्चर्य हुआ और लगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का असर दिखने लगा है. मैंने अपने ओला टैक्सी के ड्राइवर से पूछा कि क्या बात है शहर की कायापलट हो गई. लगता है यह सब योगी जी कृपा है. मेरी बात सुनकर वह बोला- जी हाँ, काम करें टीपू, मौज़ उड़ावें दीपू!

मैंने उसकी इस पहेली का मतलब जानना चाहा तो वह बोला- सर जी आज जो आप खाली-खाली सड़कें और फ्लाई ओवर देख रहे हैं, वे सब अखिलेश यादव सरकार की देन हैं. मगर काम पूरा होता उसके पहले ही अखिलेश सरकार चली गई और अब उन काम का उदघाटन योगी जी कर रहे हैं और फालतू का क्रेडिट लूट रहे हैं. अपने घर आने के बाद जब मैंने शहर की इस तब्दीली के बारे में मालूम करना शुरू किया तो पता चला कि अपने राज के आखिरी दो वर्षों में अखिलेश यादव ने कई परियोजनाएं शुरू कराईं, बिजली सप्लाई को दुरुस्त करने के लिए केस्को (कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन) को कसा और खैनी, पान, तम्बाखू खाकर इधर-उधर थूकने वालों पर नकेल कसी तो नतीजे भी सामने आने लगे. लेकिन उनका दुर्भाग्य कि अपने काम को देखने और उसका क्रेडिट लेने के लिए उनकी सरकार ही चली गई. इसीलिए यहाँ कहा जाने लगा है कि काम करावें टीपू (अखिलेश यादव का घरेलू नाम) भैया, मौज़ उड़ावें दीपू (संन्यासी) भैया!

इसमें कोई शक नहीं कि अखिलेश यादव जब अपने पिता और चाचा के नागपाश से मुक्त हुए तो उन्होंने यूपी के विकास के लिए अँधाधुंध काम शुरू कराए. अपनी टीम में उन्होंने यूपी के तेज-तर्राक अफसरों को रखा. नवनीत सहगल को आगरा-लखनऊ हाईवे को जल्द से जल्द काम पूरा करने की जिम्मेदारी दी तो यूपी पॉवर कारपोरेशन के एमडी एपी मिश्रा को सूबे में बिजली सप्लाई दुरुस्त करने के काम पर लगाया. कानपुर में बिजली चोरी करने वाले कटियाबाजों पर लगाम लगाने के लिए ऋतु माहेश्वरी को केस्को का एमडी बनाया गया. इन अफसरों ने अपनी लगन और परिश्रम से सूबे की शक्ल बदल दी. आज जो बदलाव यूपी में दीखता है उसके पीछे अखिलेश यादव की सोच है. मगर जनता हिंदू-मुस्लिम के दुश्चक्र में ऐसी उलझी कि उसे सच-झूठ का भेद करने की बुद्धि ही नहीं रही. नतीजा सामने है. एक संन्यासी का राज आ गया है.
मैं यह नहीं कह रहा कि किसी संन्यासी को राज नहीं करना चाहिए, बिलकुल करना चाहिए आखिर हमारा संविधान हर किसी को राज करने के लिए जनता के बीच जाकर निर्वाचित होकर आने की अनुमति देता है. अब यह सोचना जनता का काम है कि जिसका निर्वाचन उसने किया है उसमें राज करने की क्षमता कितनी है. यकीनन योगी आदित्यनाथ एक लोकप्रिय जनप्रतिनिधि रहे हैं.

आखिर कोई यूँ ही नहीं छह बार लोकसभा के लिए चुना जा सकता लेकिन लोकसभा के लिए चुना जाना आपकी लोकप्रियता का सबूत तो हो सकता है मगर यह आपकी प्रशासनिक काबिलियत का सबूत नहीं है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह महीने पहले शपथ लेने के बाद जिस कड़ाई का संकेत दिया था उसकी पोल खुलने लगी है. सत्य तो यह है कि मुख्यमंत्री की न तो अफसर सुनते हैं न उनकी कैबिनेट के सदस्य. उनके एक वरिष्ठ सहयोगी और उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य ने तो कर्मचारियों से कह दिया की रिश्वत खाओ लेकिन थोड़ी-थोड़ी. यानी एक तरह से उन्होंने रिश्वत को कानूनी जामा पहना दिया.
जबकि मुख्यमंत्री रिश्वतखोरों को हटाने और पीटने की बात करते रहे हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा अपने इस डिप्टी को न हटाने से यही सन्देश गया कि योगी आदित्यनाथ रिश्वतखोरों पर लगाम नहीं लगा पा रहे. यानी एक तरह से मुख्यमंत्री लाचार हैं. ज़ाहिर है ऐसा मुख्यमंत्री सूबे में कुछ नया काम करने की बजाय पुराने मुख्यमंत्री के काम का श्रेय लेता रहेगा और अपनी सरकार चलाएगा.
(वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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