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अपनी गलतफहमी दूर कीजिए यशवंत सिन्‍हा आप ‘भीष्‍म’ नहीं ‘विभीषण’ हैं !

निराशावादी यशवंत सिन्‍हा लगातार अपनी ही पार्टी की सरकार पर हमला बोल रहे हैं। वो कहते हैं कि मैं अर्थव्‍यवस्‍था की महाभारत का भीष्‍म पितामाह हूं।

New Delhi Oct 05 : गलतफहमी और महात्‍वाकांक्षा किसी भी आदमी से कुछ भी करा सकती है। बेगानों को अपना और अपनों को बेगाना बना सकता है। यही हाल आजकल देश के पूर्व वित्‍त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता यशवंत सिन्‍हा के साथ देखने को मिल रहा है। मैं यशवंत सिन्‍हा जी से हाथ जोड़कर माफी मांगना चाहूंगा कि अगर आपको हमारी बातें बुरी लगे तो माफ जरूर कर दीजिएगा। लेकिन, जिस तरह आप चुप नहीं रह सकते उसी तरह हम भी अपनी जुबान पर ताला नहीं लगा सकते हैं। जितना हक आपको देश की जनता के सामने अपनी बात को रखने का है उतना ही हक हम जनता को भी आपके सामने अपनी बात रखने का है। यशवंत सिन्‍हा जी आपको ये बात माननी पड़ेगी कि आप निराशावादी हैं।

आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पिछले एक साल से मिलना चाह रहे हैं, आपके मुताबिक आपने उसने कई बार मिलने का वक्‍त भी मांगा लेकिन, आपको भाव ही नहीं दिया गया। अगर आपको कोई भाव नहीं देगा तो क्‍या आप देश की जनता में ही सरकार के प्रति निराशाजनक बातें शुरु कर देंगे। जैसा कि आप कर रहे हैं। देश की अर्थव्‍यवस्‍था की आज जो स्थिति है इससे कहीं ज्‍यादा बुरी स्थिति पूर्व की सरकारों में हुआ करती थी। लेकिन, आपने मुखारबिंदु से उस वक्‍त विपक्ष के लिए कोई बातें नहीं निकलती थीं। आज एक तिमाही के आंकड़े पर ही आपने बवाल मचा रखा है। यशवंत सिन्‍हा जी आप गलतफहमी के शिकार हैं। आपको लगता है कि आप भीष्‍म पितामाह हैं। लेकिन, असल में आप इस वक्‍त विभीषण की भूमिका में नजर आ रहे हैं।

आप कहते हैं कि मैं अर्थव्‍यवस्‍था के चीरहरण पर चुप नहीं रहूंगा। लेकिन, आप तो खुद ही अपनी ही सरकार का चीरहरण करने में उतारू हैं। आप कहते हैं कि आपके लिए ये महत्‍वपूर्ण नहीं है कि आप आशावादी हैं या फिर निराशावादी। लेकिन, हमारे लिए ये बहुत महत्‍वपूर्ण हैं। अगर आपकी सोच आशावादी विचारधारा का समर्थन करती है तो आपको नोटबंदी में खामियां नहीं दिखेंगी। लेकिन, अगर आपके दिमाग में निराशावाद का कीड़ा घुसा हुआ है तो यकीनन आपको रोजगार के सरकारी आंकड़े भी भ्रामक लगेंगे। यशवंत सिन्‍हा जी आप जैसे लोग विदेशी एजेंसियों की बातों पर यकीन करते हैं। लेकिन, सरकार के तथ्‍यों को झूठा बताते हैं। क्‍या आपके पास ऐसा कोई फार्मूला या एजेंसी है जो ये साबित कर सके कि रोजगार के सरकारी आंकड़े गलत हैं।

यशवंत सिन्‍हा जी बुरा मत मानिएगा लेकिन, आप जैसे लोगों ने ही देश के सामने अर्थव्‍यवस्‍था के संकट का फर्जी हौव्‍वा क्रिएट करते हैं। जिसका फायदा निजी कंपनियां उठाती हैं। मंदी और अर्थव्यवस्‍था की बदहाली की बातें कर अपने कर्मचारियों का शोषण करती हैं। आप जैसे  नेता ही उन हजारों लाखों कर्मचारियों के शोषण के असली गुनाहगार हैं जिनके बयान को दिखाकर कंपनियां उन्‍हें मजबूर करती हैं। अर्थव्‍यवस्‍था पर चर्चा जरुरी है। अगर अर्थव्‍यवस्‍था बिगड़ रही है तो आवाज उठानी भी जरुरी है। लेकिन, तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं। देश की बड़ी आबादी जीडीपी, विकास दर, मुद्रा स्‍फी‍ति बगैरह-बगैरह इन सारी बातों को ना समझती है और ना ही जानती है। उसका सीधा वास्‍ता जेब और महंगाई से होता है। यशवंत सिन्‍हा जी इस बात को जरुर ध्‍यान रखिएगा।

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