New Delhi, Oct 07 : प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि चाहे जितने महात्मा गांधी और नरेंद्र मोदी आ जाएं, जब तक व्यापक जन भागीदारी नहीं होगी, देश में स्वच्छता नहीं लाई जा सकती।
इस तरह प्रधान मंत्री ने यह स्वीकार किया कि उनका महत्वकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान फिलहाल विफल रहा। पर इस संबंध में उम्मीद की किरण खुद गुजरात के सूरत से आती रही है। पर, उसे खुद प्रधान मंत्री ने भी नजरअंदाज कर दिया है।
यदि उन्होंने पूरे देश में सफाई का ‘सूरत माॅडल’ लागू करवाने का प्रयास किया होता तो शायद उनका स्वच्छता अभियान इस तरह विफल नहीं होता। स्वच्छता अभियान की सफलता के लिए यह जरूरी है कि पहले नगरों और महा नगरों की सफाई हो। बाद में अन्य स्थानों के लोग उससे सबक और प्रेरणा लेंगे। अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि जब नगरों-महा नगरों में महामारी फैलने लगेगी जैसी महामारी भारी गंदगी के कारण मई, 1995 में सूरत में फैली थी। तब वहां प्लेग से 52 लोगों की मृत्यु हो गयी थी। सूरत से लोगों का पलायन होने लगा था। पर इस स्थिति को बदलने में एक आई.ए.एस. अफसर, एस.आर.राव ने ऐतिहासिक काम किया था।
थोड़े ही समय में उन्होंने सूरत को गुजरात का सर्वाधिक स्वच्छ नगर बना दिया। पूरे देश में भी तब से सूरत को नमूने के रूप में पेश किया जाने लगा। इस काम के लिए उस अफसर की इतनी तारीफ हुई कि लोग उनका आॅटोग्राफ लेने लगे थे। श्री राव सूरत के नगरपालिका आयुक्त थे। राव ने सबसे पहले अपने अधीनस्थ अफसरों को ए.सी. दफ्तरों से बाहर निकाल पर सड़कों पर खड़ा कर दिया। उन्हें उस काम में लगा दिया जिस काम के लिए उन्हें वेतन मिलता था। साथ ही उन्होंने बड़े -बड़े नेताओं और बिल्डरों की नाराजगी की परवाह किए बिना नगर से अतिक्रमण हटवा दिया। जो अमीर लोग अधिक गंदगी फैलाते थे, उन पर सबसे पहले कार्रवाई हुई।
इसके अलावा भी उन्होंने कई कदम उठाए। ऐसे कदमों के कारण न सिर्फ जनता वाह वाह कह उठी, बल्कि उससे उस अफसर राव को बाद में जन भागीदारी का भी पूरा लाभ मिला। क्या प्रधान मंत्री जी राज्य सरकारों की मदद से देश के कम से कम एक दर्जन नगरों में ‘सूरत माॅडल’ नहीं दुहरा सकते हैं ? शुरूआत छोटे पैमाने पर ही हो। बाकी बाद में करने लगेंगे। तमाम गिरावट के बावजूद अब भी इस देश में एस.आर.राव जैसे कुछ अफसर मिल जाएंगे । पर शत्र्त है कि निहितस्वार्थियों के कोप से ऐसे अफसरों को बचाना होगा।यह सरकार का काम है। यदि पटना, वाराणसी और दिल्ली जैसे महा नगरों को सफाई के मामले में ‘सूरत’ बना दिया गया तो छोटी जगहों के लोगबाग भी उसका अनुसरण करेंगे।
लोगों से सफाई की अपील करने से पहले सरकारों को चाहिए कि वे अपने महा पालिकाओं के अफसरों और कर्मचारियों को टाइट करें।जरूरत के अनुसार उनकी संख्या बढ़ाएं। आप देश के नगर और महा पालिकाओं के अधिकतर अफसरों को जनता के पैसे लूटने की छूट दिए रहेंगे और जनता से कहेंगे कि वह सफाई करे तो यह तो जनता के प्रति अन्याय है। पहल तो शासन को ही करनी होगी।
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