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गोधरा कांड : गुजरात हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की सजा उम्र कैद में बदली !

गोधरा कांड : ट्रायल कोर्ट में दोषी ठहराये गये इन आरोपियों का कहना था कि उन्हें न्याय नहीं मिला, उन्होने गुजरात हाई कोर्ट में अपील की थी।

New Delhi, Oct 09 : गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे जलाने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला सुना दिया है, हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। आपको बता दें कि गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 में कुछ लोगों ने आग लगा दी थी, जिससे झुलसने से 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी, कारसेवकों की मौत के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे, जिसमें 12 सौ से ज्यादा निर्दोष लोगों की हत्या हुई थी।

आपको बता दें कि ट्रायल कोर्ट में दोषी ठहराये गये इन आरोपियों का कहना था कि उन्हें न्याय नहीं मिला, उन्होने गुजरात हाई कोर्ट में अपील की थी। पंद्रह साल पहले हुई इस घटना की न्यायिक प्रक्रिया में सेशन कोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक शामिल रहे, 15 साल से चल रहे इस मामले ने कई उतार-चढाव देखें हैं। आपको बता दें कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में कुछ लोगों ने आग लगा दी थी, जिसमें 59 कारसेवकों की झुलसने से मौत हो गई, इस मामले में करीब डेढ हजार लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस ट्रेन में भीड़ ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी, गोधरा कांड की जांच कर रहे नानावती कमेटी ने भी इस बात को स्वीकार किया है।

गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक दंगा भड़क गया, जिसमें करीब 12 सौ से ज्यादा लोग मारे गये थे। आगजनी और तोड़फोड़ करने को लेकर कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। फिर 3 मार्च 2002 को ट्रेन में आग लगाने के मामले में गिरफ्तार किये गये लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश यानी पोटा लगाया गया, हालांकि फिर बाद में उसे हटा लिया गया था। फिर प्रदेश सरकार ने 6 मार्च 2002 को दंगों की जांच करने के लिये एक कमेटी का गठन किया, पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र करने का मामला दर्ज किया। फिर 25 मार्च 2002 को केन्द्र सरकार के दवाब में आरोपियों पर लगाये गये पोटा को हटा लिया गया।

फिर साल 2004 में यूपीए वन की सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया। जनवरी 2005 में इस मामले की जांच कर रही यू सी बनर्जी ने अपने प्रारंभिक रिपोर्ट में जानकारी दी, कि साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग एक दुर्घटना थी, इस बात की आशंका को भी उन्होने खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी। फिर 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाई कोर्ट ने बनर्जी कमेटी को अमान्य बताते हुए उनकी रिपोर्ट को ठुकरा दी, फिर 2008 में एक जांच कमेटी बनाया गया, और नानावती कमेटी को इसकी जांच सौंपी गई। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक ये आग दुर्घटना नहीं बल्कि एक साजिश थी। 18 जनवरी 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में न्यायिक कार्रवाई करने को लेकर रोक हटा ली। फिर 22 फरवरी 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी ठहराया, जबकि 63 लोग बरी हो गये। 1 मार्च 2011 को विशेष कोर्ट ने गोधरा कांड में 11 दोषियों को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई। फिर 2014 में नानावती कमेटी ने 12 साल की जांच के बाद अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन सीएम आनंदीबेन पटेल को सौंप दी थी।

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