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हाउसिंग सोसायटी में दिवाली पार्टी का जलवा, कुछ खास हैं कोने वाले डाँस फ़्लोर

मर्द डाँस फ़्लोर पर मूर्ति भसान के अपने संस्कार नहीं भूलते। जैसे ही वे किसी महिला के करीब पहुँचते हैं, लगता है अब 500 का नोट निकाल कर घुमाने लगेंगे।

New Delhi Oct 15 : सात समंदर पार मैं तेरे पीछे पीछे आ गई…तू मेरी गर्लफ्रैंड..मैं तेरा ब्वाय फ्रैंड…कजरारे…कजरारे…तेरे कारे कारे नैना…अरे ओ जुम्मा, मेरी जानेमन, बाहर निकल…कानों पर गानों का हमला है। आज की रात मोहल्ले की कई हाउसिंग सोसायटी में दिवाली पार्टी का जलवा है। साठ, सत्तर, अस्सी, नब्बे के गाने दौड़े चले आ रहे हैं। लगता है इस साल का अपना कोई सुपर हिट गाना नहीं आया है। चिट्टियां कलाइयाँ वे…पुराना हो चुका है। हर सोसायटी के कोने में डाँस फ़्लोर बना है। थोड़ी सी जगह में ज़्यादा लोगों की गुज़ाइश बन आई है। टकराना अच्छा लग रहा है। बहाना नहीं लगा ! क्या पता ! थोड़ा सा हाथ उठा कर कंधे को उचकाना जम रहा है।

गुलाबी और सफेद रंग की मिक्स ज़री के काम वाली साड़ियों में लगे सलमा-सितारे चमक रहे हैं। काले रंग की साड़ियाँ भी हैं। पर रंगों की वेरायटी है। पाँव के नीचे की हिल्स ऊंचाई का भरोसा पैदा कर रहे हैं। महिलाओं के स्टेप्स सधे हुए हैं। कान के झुमकों के ‘स्विंग’ से पता चलता है। ज़्यादातर औरतों की नाचने की ट्रेनिंग उम्दा है। अदा है और शालीनता भी। पता चलता है कि यहाँ तक आने के लिए किसी ने कितनी मेहनत की है। मर्दों को नाचते देखा नहीं जाता है। झट से कोई मुँह में रूमाल दबा लेता है तो कोई रूमाल के नीचे आ जाता है। पाँच मिनट भी ‘ग्रेस’ शालीनता के साथ नहीं नाच सकते। भारत के मर्द डाँस फ़्लोर पर आते ही मूर्ति भसान के अपने संस्कार नहीं भूलते हैं।

जैसे ही वे किसी महिला के करीब पहुँचते हैं, लगता है अब पाँच सौ का नोट निकाल कर घुमाने लगेंगे। डाँस देखने का सारा सौंदर्य बोध बिगड़ जाता है। तुरंत घुटने पर बैठ कर हाथ ऊपर कर दुनाली बंदूक की तरह चलाने लगते हैं। काश कोई पुरुषों को कपड़ा पहनने का सलीक़ा सीखा देता। यही बता देता कि त्योहार का मतलब नीले और काले रंग का कुर्ता पहनना नहीं होता। कुछ और रंग भी होते होंगे। शायद पुरुषों को व्हिस्की के बग़ैर जश्न मनाना नहीं आता। पीते इसलिए हैं कि अपनी चिरकुटई ख़ुद न देख सकें। लानत है। डाँस फ़्लोर का मजमा देखकर लगता है कि सिनेमा ने औरतों और मर्दों को अलग-अलग प्रभावित किया है। औरतों की कल्पना में कोई न कोई हिरोइन है। वो आज की रात नाचते हुए किसी और की तरह हो जाना चाहती हैं।

अपनी ख़ूबसूरती के ऊपर किसी और हिरोइन को ओढ़ लेना चाहती हैं। मर्द कंफ्यूज़ हैं। वे जो भी होना चाहते हों मगर बार-बार उनका असल ही बाहर आ जाता है। क्या कोई हीरो अच्छा डांसर नहीं हुआ जिससे ये मर्द थोड़ा नाचना सीख लेते। मैं किनारे खड़ा सब देख रहा हूँ। मुझे नाचना नहीं आता है। काश ! ग़र अंदाज़ हो तो आप देखते हुए भी थिरक सकते हैं। आप वहाँ नहीं होते हुए भी हो सकते हैं। आप ख़बरों को लेकर नाहक परेशान हैं। ज़माना दिवाली की तैयारी में जुटा है। जश्न का जुनून छाया हुआ है। आप सभी को दिवाली मुबारक। (टीवी के जानेमाने और वरिष्‍ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार। ये लेखक के निजी विचार हैं। जरूरी नहीं हम इन विचारों से सहमत हों)

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