New Delhi, Oct 16: राजनीति को एक लाइन में समझाया जा सकता है, जी हां लोग बिना बात के सियासी दलों की चालों और रणनीतियों की चर्चा करते हैं, राजनीति का सीधा मतलब है अपना फायदा देखना, जिसे जहां फायदा दिखाई देता है वो वहीं चला जाता है। जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुटी कांग्रेस अब करने वाली है। 2014 के बाद से ही कांग्रेस की हालत खराब है, हालांकि अब कांग्रेस वापसी करती दिख रही है। राहुल गांधी भी मेहनत कर रहे है, लेकिन क्या वो पुरानी गलतियां फिर से दोहराने का मन बना रहे हैं। ये सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है क्योंकि अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस 2019 के चुनाव में सीपीएम के साथ गठबंधन कर सकती है।
अगर ये अटकलें सही साबित होती हैं तो ये कांग्रेस की तरफ से एक गलत रणनीति होगी,. वाम दलों का प्रभाव लगातार कम हो रहा है, उनकी राजनीति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। केरल में जिस तरह से खूनी राजनीति हो रही है उसमें बीजेपी और संघ के साथ वामदलों का भी हाथ है। तो सवाल ये है कि राहुल क्या ये होने देंगे, या फिर वो अपने दम पर मोदी को चुनौती देने की हिम्मत दिखाएंगे। उस से भी बड़ा सवाल सीपीएम के लिए ये है कि क्या वो कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं। और अगर हां तो इस से दोनों को क्या और कितना फायदा होगा। बात करते हैं सीपीएम की, तो सीपीएम की केंद्रीय समिति में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है। कहा तो ये भी जा रहा है कि सीपीएम कांग्रेस से गठबंधन को तैयार है।
अब सीपीएम अगर तैयार हो रही है तो इसका मतलब ये हुए उसकी जरूरत है, यहां पर कांग्रेस को लिबर्टी मिल सकती है कि वो अपनी शर्तों पर गठबंधन करे। सीपीएम का कहना है कि वो सेकुलर पार्टियों के साथ जाने को तैयार है। बता दें कि 3 साल पहले सीपीएम की केंद्रीय समिति की बैठक में ये तय किया गया था कि वामदल कांग्रेस और बीजेपी किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे, तो ऐसा क्या हो गया कि अपने ही फैसले से वाम दल अब पीछे हट रहे हैं। इसका सीधा संबंध बीजेपी के उभार से है। बीजेपी अब वाम दलों के गढ़ में चुनौती दे रही है। बंगाल और केरल को लेकर अमित शाह का प्लान सबको दिखाई दे रहा है। अमित शाह नए सियासी मैदान तैयार कर रहे हैं।
सीपीएम का कांग्रेस के साथ गठबंधन करना उसकी मजबूरी के अलावा कुछ नहीं होगा। क्योंकि सीपीएम को पता है कि देश के कुछ राज्यों को छोड़कर उसका प्रभाव कहीं नहीं है। वहीं कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में अब आक्रामक दिख रही है। जो लोग राहुल की आलोचना करते थे उनको भी उम्मीद दिखाई दे रही है। हालांकि कांग्रेस को लेकर सीताराम येचुरी और प्रकाश करात में मतभेद भी दिख रहे हैं। प्रकाश करात कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ हैं, वहीं सीताराम येचुरी चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ गठबंधन किया जाए, जिनमें कांग्रेस भी शामिल है। अब देखना है कि राजनीति की मजबूरी या फिर मजबूरी की राजनीति में सीपीएम क्या फैसला लेती है, और कांग्रेस क्या उसके प्रस्ताव को स्वीकार करती है।
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