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किसको फायदा पहुंचाएंगे प्रणब मुखर्जी के 13 साल पुराने राज ?

पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने साल 2004 के कुछ राज खोले हैं। ये राज राजनीति में भूचाल ला सकते हैं। लेकिन, इसका फायदा किसे मिलेगा ?

New Delhi Oct 16 : देश के पूर्व राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कुछ राज खोले हैं। उन्‍होंने एक आत्‍मकथा लिखी है जिसका नाम है ‘द कोएलिशन ईयर्स : 1996-2012’। इसके तीसरे संस्‍करण में उन्‍होंने 13 साल पुरानी कई बातों का जिक्र किया है। प्रणब मुखर्जी की आत्‍मकथा में ये भी बताया गया है कि आखिर 2004 में भारतीय जनता पार्टी की हार क्‍यों हुई थी। क्‍यों उस वक्‍त बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था। प्रणब मुखर्जी का मानना है कि अटल बिहारी वाजपेयी के राज में राम मंदिर निर्माण की मांग जोर पकड़ रही थी। इस बीच 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हो गए थे। प्रणब मुखर्जी का मानना है कि वाजपेयी सरकार पर इसका बुरा असर पड़ा था। शायद यही वजह है कि बीजेपी को 2004 में करारी शिकस्‍त का सामना करना पड़ा था।

प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्‍मकथा ‘द कोएलिशन ईयर्स : 1996-2012’ के एक अध्‍याय ‘फर्स्ट फुल टर्म नॉन कांग्रेस गवर्नमेंट’ में लिखा है कि गोधरा में साबरमती एक्‍सप्रेस के एक डिब्‍बे में आग से 58 लोग जिंदा जलकर मर गए। ये सभी लोग अयोध्‍या से लौट रहे कारसेवक थे। इस घटना की प्रतिक्रिया में गुजरात सुलग उठा था। गुजरात के कई शहरों में बड़े पैमाने पर दंग भड़क गए थे। प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि संभवत : गुजरात के दंगे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर लगा सबसे बड़ा धब्‍बा था। 2002 में हुए इन दंगों का असर आगामी लोकसभा चुनावों में देखने को मिला। प्रणब मुखर्जी लिखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी उत्कृष्ट सांसद थे। एक शानदार वक्‍ता थे। उन्‍होंने लोगों को अपने साथ जोड़ने की कला आती थी।

प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में लोगों का दिल जीत लिया था। उनका भराेसा हासिल कर लिया था। उनकी विदेश नीति से भारत को नई ऊंचाईयां मिलीं। प्रणब मुखर्जी का कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा से दूसरों को उनके कार्यों का श्रेय दिया। वो प्रभावशाली और विनम्र नेता थे। लेकिन, 2002 के गुजरात दंगों से सबकुछ पलट दिया। प्रणब मुखर्जी ये भी मानते हैं कि सुधार की शुरुआत हम लोगों ने नहीं की। यूपीए सरकार नरसिम्‍हा राव सरकार के काम को ही आगे बढ़ाती रही। हालांकि उन्‍होंने अपनी कांग्रेस समर्थित यूपीए सरकार को श्रेय देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, उन्‍होंने अपनी किताब में वाजपेयी जी की बहुत तारीफ की।

प्रणब मुखर्जी लिखते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत तौर पर नहीं लिया। मुखर्जी ने लिखा है कि साल 2004 में राजनैतिक पंडितों ने एनडीए की स्‍पष्‍ट सरकार बनने की भविष्‍यवाणी की थी। लेकिन, सभी राजनैतिक पंडितों के आंकलन धरे के धरे रह गए। कांग्रेस और गैर भाजपाई पार्टियां फिर से सत्‍ता में आ चुकी थीं। प्रणब मुखर्जी का कहना है कि दरसअल, बीजेपी के इंडिया शाइनिंग का अभियान पूरी तरह उलटा पड़ गया था। एनडीए का आत्‍मविश्‍वास भी उस वक्‍त हिल चुका था। 2004 की करारी हार के बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी ने बेहद ही दुखी होकर कहा था कि आप कभी भी मतदाता के मन को नहीं समझते। यही बात यहां पर भी लागू होती है। मन को समझिए और विचार कीजिए कि मुखर्जी के राज किसको फायदा पहुंचाएंगे ?

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