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तो क्‍या लालू यादव के लिए दिवाली का त्‍यौहार सांप्रदायिक है ?

आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव को दिवाली के त्‍योहार में सांप्रदायिकता नजर आती है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नेता वोटों की खातिर कहां तक गिर सकते हैं।

New Delhi Oct 18 : अयोध्‍या में इस बार दिवाली का ग्रांड सेलीब्रेशन चल रहा है। कलयुग में त्रेता युग जैसी दिवाली मनाई जा रही है। योगी आदित्‍यनाथ और उनकी सरकार ने अयोध्‍या की दिवाली को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वैसे सरयू के तट पर हर साल अयोध्‍या में दिवाली का त्‍योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन, इस बार अंदाज कुछ बदला है। एक लाख 71 हजार दिए जलाकर विश्‍व रिकॉर्ड बनाने की तैयारी है। लेकिन, बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव को इसमें सांप्रदायिकता की बू आती है। उन्‍हें अयोध्‍या की दिवाली और गायों का संरक्षण सांप्रदायिक नजर आता है। इतना ही नहीं वो इस कार्यक्रम की निंदा भी कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वोट बैंक की राजनीति की खातिर कोई नेता किस हद तक जा सकता है।

क्‍या लालू यादव की नजरों में दिवाली का त्‍योहार धूमधाम से मनाना सांप्रदायिकता है ? अगर वो इसी त्‍योहार को मनाते हैं तो दिवाली धर्म निरपेक्ष हो जाती है लेकिन, योगी आदित्‍यनाथ दिवाली मनाए तो सांप्रदायिक हो जाते हैं। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है ? लेकिन, बेहद अफसोस की बात ये है कि खुशियों के इस त्‍योहार में भी लालू यादव सरीखे नेताओं ने अपनी राजनीति और सांप्रदायिकता की गंध डाल दी है। इस तरह के नेताओं के दिमाग में सिर्फ एक वर्ग विशेष के लिए ही बत्‍ती जलती है। करते ये उनके लिए भी कुछ नहीं हैं। लालू यादव का कहना है कि दरअसल, भारतीय जनता पार्टी और योगी आदित्‍यनाथ प्रदेश और देश में सांप्रदायिक माहौल बनाए रखना चाहते हैं इसलिए राम और गाय के मुद्दे को उठाते हैं।

अब अगर दिवाली का त्‍योहार भगवान राम की वजह से ही मनाया जाता है तो इसमें कोई क्‍या कर सकता है। लालू यादव जैसे नेताओं को तो सिर्फ यही सलाह दी जा सकती है कि वो इस तरह के बयान देने से पहले देश के इतिहास और धार्मिक ग्रंथ जरूर पढ़ लें। अगर नहीं पढ़ सकते हैं तो कम से कम थोड़ी बहुत जानकारी जरूर उठा लें। नहीं तो कोई भरोसा नहीं कि इस तरह के नेता कल को रावण दहन और रामलीला को लेकर भी सांप्रदायिक टिप्‍पणी करनी शुरु कर दें। भाई दिवाली का नाता ही अयोध्‍या से है तो फिर उसके भव्‍य आयोजन में कोई कैसे मीन-मेख निकाल सकता है। ये तो वही बात हुई जैसे छठ पूजा को लेकर कोई लालू यादव या फिर बिहार के लोगों पर सवाल खड़े करे। बिहार में छठ पूजा का महत्‍व है ये त्‍योहार बिहार में सबसे धूमधाम से मनाया जाता है तो फिर कोई इस पर कैसे सवाल खड़े कर सकता है।

लेकिन, लालू यादव को तो लगता है कि दिवाली मनाना सांप्रदायिक है। इस तरह के नेताओं को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। कम से कम खुशियों और रोशनी के त्‍योहार पर तो इस तरह की ओछी बयानबाजी से बचना ही चाहिए। सभी धर्म की इज्‍जत करनी चाहिए। हिंदुस्‍तान के हर नागरिक का ये हक है कि वो अपने त्‍योहार को अपने मुताबिक मनाए। इसमें राजनैतिक दखलंदाजी ना हो तो ही बेहतर है। नहीं तो ये पब्लिक है सब जानती है। फर्श से अर्श पर नेताओं को पहुंचाने वाली पब्लिक उसी नेता को अर्श से फर्श पर भी लाना जानती है। त्‍योहार में अच्‍छा माहौल बनाए रखने की जरूरत है। किसी भी नेता को ये हक नहीं है कि वो किसी भी त्‍योहार पर जली-कटी बातें बोलकर वोट बैंक की राजनीति करे।  

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