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यूपी में मायावती की वापसी का मतलब अखिलेश यादव का सफाया ?

यूपी नगर निगम चुनाव में मायावती की पार्टी बीएसपी ने वापसी की है। प्रदेश में बहन जी की वापसी का मतलब अखिलेश के लिए बेहतर संकेत नहीं हैं।

New Delhi Dec 02 : इसी साल के शुरुआत में यूपी में विधानसभा के चुनाव हुए थे। यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बंपर वोटों से जीत हासिल की थी। वहीं दूसरी पार्टियों का सूपड़ा ही साफ हो गया था। आलम ये था कि मायावती की पार्टी को विधानसभा में बीस सीटें हासिल करने में लाले पड़ गए थे। जबकि समाजवादी पार्टी पचास सीटों का भी आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। कांग्रेस पार्टी दस सीटों के भीतर ही सिमट कर रह गई थी। उसी दिन से ये कहा जाने लगा था कि अब उत्‍तर प्रदेश में मायावती का जनाधार खत्‍म हो चुका है। बीएसपी का सूपड़ा साफ हो चुका है। लेकिन, नगर निगम चुनाव में मायावती ने वापसी कर साबित कर दिया है कि अभी ना तो उनका जनाधार खत्‍म हुआ है और ना ही बीएसपी का सूपड़ा साफ हुआ है।

यूपी में मायावती की वापसी का मतलब साफ है कि अखिलेश यादव के लिए ये बेहतर संकेत नहीं हैं। चुनाव की चक्‍कलस को आप दूसरे और सरल अंदाज में भी समझ सकते हैं। यूपी नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बीएसपी से कड़ी टक्‍कर मिली। लेकिन, इसका ये कतई मतलब नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी के वोटों में कोई कमी आई। प्रदेश में इस चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ा। अब ऐसे में सवाल उठने लाजिमी हैं कि आखिर मायावती को किस खाते से वोट मिले। अगर बीजेपी के वोट बैंक में कोई सेंधमारी नहीं हुई और उसे कोई नुकसान नहीं हुआ तो इसका मतलब साफ है कि मायावती को ये वोट उसके परंपरागत वोट बैंक के अलावा मुस्लिमों से मिला। अगर मुस्लिम वोट बैंक मायावती के साथ चला गया है तो फिर समाजवादी पार्टी के पास क्‍या बचता है।

दरअसल, यूपी में हमेशा से जातिगत राजनीति होती रही है। बीएसपी का फोकस जहां दलितों के अलावा मुसलमानों पर रहता है वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी की नजर ओबीसी और मुस्लिम वोटों पर रहती है। कांग्रेस का भी कुछ ऐसा ही हाल है। यानी पूरे के पूरे विपक्ष की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर होती है। ऐसे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नकारा प्रदर्शन के चलते कहा जा सकता है कि मुस्लिम वोट बैंक या बीजेपी से खफा लोग मायावती के साथ चले गए हैं। इसके साथ ही मायावती ने ये भी साबित कर दिया है कि उन्‍हें प्रदेश से जल्‍द ना तो हटाया जा सकता है और ना ही साफ किया जा सकता है। दरअसल, इस साल जब यूपी में विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए थे तब मायावती ने बीजेपी की जीत के लिए ईवीएम की गड़बड़ी को जिम्‍मेदार ठहराकर बवाल मचवा दिया था।

लेकिन, सही मायने में उन्‍होंने इस राजनैतिक चाल के साथ ही अपने संगठन की कमजोरी को पकड़ने की भी शुरुआत कर दी थी। महीनों की कड़ी मेहनत का असर मायावती को यूपी नगर निगम चुनाव में देखने को मिला है। वहीं दूसरी ओर शायद अब तक अखिलेश यादव ने अपनी हार का मंथन भी नहीं किया। अगर यूपी विधानसभा चुनाव हारने के साथ ही वो पार्टी को मजबूत करने में जुट जाते तो शायद आज हालात कुछ और होते। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यूपी नगर निगम चुनाव के नतीजे बताते हैं कि मायावती की पार्टी ने यूपी में अखिलेश यादव के बचे खुचे जनाधार में भी सेंधमारी कर दी है। अखिलेश को एक साल के भीतर अपनी दूसरी करारी हार से सबक लेना चाहिए। अगर अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव ने अपनी इस हार से सबक नहीं लिया तो यकीनन समाजवादी पार्टी का पूरा का पूरा वोटबैंक मायावती के साथ खड़ा नजर आएगा।   

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