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नेपाल में जीत की ओर माओवादी विद्रोहियों का गठबंधन, चीन को मिलेगा फायदा, मुश्किल में भारत ?

नेपाल की राजनैतिक अस्थिरता भारत के लिए मुसीबत का सबब बन सकती  है। यहां के पूर्व माओवादी विद्रोहियों पर चीन ने भी अपनी नजरें गड़ा ली हैं।

New Delhi Dec 13 : नेपाल में लंबे समय से राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। नेपाल की इस हालत का असर ना सिर्फ भारत पर पड़ सकता है बल्कि चीन भी इससे प्रभावित हो सकता है। दरसअल, चीन हमेशा से चाहता है कि उसे नेपाल का साथ मिले। लेकिन, नेपाल में अब तक जो भी सरकारें रही वो भारत को सपोर्ट करती रही हैं। लेकिन, इस बार हालात कुछ बदलते हुए नजर आ रहे हैं। नेपाल की मुख्य कम्युनिस्ट पार्टी और पूर्व माओवादी विद्रोहियों का गठबंधन जीत की ओर बढ़ रहा है। माना जा रहा है कि नेपाल में अगली सरकार इसी गठबंधन की बनेगी। जो नेपाल कांग्रेस की सत्‍तारुढ कांग्रेस को बेदखल करेगी। नेपाल में पूर्व माओवादी विद्रोहियों और कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के गठबंधन ने ज्‍यादातर सीटों पर अपना कब्‍जा जमा लिया है।

माना जा रहा है कि इस सूरत में पूर्व माओवादी विद्रोहियों के नेता केपी ओली नेपाल के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो यकीनन नेपाल में एक स्थिर सरकार तो जरूर बनेगी। लेकिन, भारत के लिए मुसीबतें पैदा हो सकती हैं। लेकिन, चीन ने अभी से नेपाल पर अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ा दी है। चीन चाहता है कि नेपाल का सत्‍ता समीकरण भारत के पक्ष में ना रहे। कहा तो ये भी जा रहा है कि नेपाल में इस वक्‍त जो हालात हैं उसके लिए काफी हद तक चीन भी इसका जिम्‍मेदार है। चीन भी चाहता था नेपाल में मुख्य कम्युनिस्ट पार्टी और पूर्व माओवादी विद्रोहियों का गठबंधन ही जीते। हो भी वैसा ही रहा है जैसा चीन चाहता था। यानी नेपाल में नई सरकार के साथ ही एक बड़ा राजनैतिक मोड़ भी दुनिया के सामने आएगा।

केपी ओली इससे पहले भी नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। 2006 से लेकर अब तक नेपाल कुल दस प्रधानमंत्रियों को देख चुका है। लेकिन, नेपालियों ने स्थिर सरकार नहीं देखी। अब नेपाल में स्थिर सरकार के लिए केपी ओली और प्रचंड गठबंधन कर चुके हैं। माना जा रहा है कि नेपाल में गृहयुद्ध् के बाद अब राज्‍य में लोकतंत्र स्‍थापति होने में मदद मिलेगी। भारत भी चाहता है कि नेपाल में स्थिर सरकार रहे। दरअसल, पड़ोसी मुल्‍क की अस्थिरता भी देश के लिए खतरे की ही बात होती है। जब नेपाल में शेर बहादुर देबा के नेतृत्‍व वाली सरकार बनी तो भारत खुश हुआ। क्‍योंकि देबा को भारत समर्थक माना जाता है। लेकिन, जब केपी ओली सत्‍ता में थे उस वक्‍त इस पूर्व माओवादी विद्रोहियों की सरकार ने कुछ एेसे फैसले किए जो भारत के खिलाफ थे। जिससे नेपाल और भारत की दूरियां बढ़ गई थीं।

जिसका फायदा चीन ने उठाया था। उस वक्‍त चीन नेपाल के करीब आ गया था। दरसअल, चीन कभी नहीं चाहता है कि भारत और नेपाल के बीच अच्‍छी दोस्‍ती रहे। चीन हमेशा से ये आरोप लगाता रहा है कि भारत नेपाल के आंतरिक मामलों में भी दखल देता है। लेकिन, अब जब नेपाल में मुख्‍य कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और पूर्व माओवादी विद्रोहियों के गठबंधन वाली सरकार का बनना तय हो गया तो ऐसे में चीन का प्रभाव भी इस पर बढ़ सकता है। माना जाता है कि नेपाल में पूर्व माओवादी विद्रोहियों और मुख्य कम्युनिस्ट पार्टी को एक साथ लाने के पीछे चीन ने अपनी बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके पीछे भी उसकी यही सोच थी कि वो भविष्‍य में इसका फायदा उठा सके। यानी नेपाल में केपी ओली की सत्ता में वापसी से भारत को झटका लग सकता है।

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