New Delhi, Dec 18: गुजरात विधानसभा चुनाव के रुझान लगभग सामने आ चुके हैं, इसी के साथ ये भी तय हो गया है कि राज्य में बीजेपी की सत्ता कायम रहेगी। 1995 के बाद से लगातार बीजेपी गुजरात की सत्ता पर काबिज है। इस बार हालात विपरीत थे, कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बीजेपी बैकफुट पर थी, जातिगत आंदोलन भी जमकर हुए, सभी को कांग्रेस ने अपने पक्ष में किया, उसके बाद भी नतीजे वैसे नहीं आए जो उम्मीद थी। यही कारण है कि बीजेपी की इस जीत को 2012 की जीत से बड़ा कहा जा रहा है। भले ही पार्टी की सीटें कम हो गई हों, लेकिन इतना कड़ा चुनाव बीजेपी ने गुजरात में कभी नहीं लड़ा। इस जीत के बाद अब बीजेपी के सामने कई सकारात्मक पहलू हैं। पहली बात तो ये कि तमाम मुश्किलों के बाद भी वो चुनाव जीत सकती है। नरेंद्र मोदी का जादू बरकरार है।
मतगणना के शुरूआती रुझानों को देखें तो पता लगता है कि कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी, लेकिन धीरे धीरे बीजेपी बढ़त बनाती गई। बीजेपी बहुमत हासिल कर रही है, ये कांग्रेस के लिए झटका तो है ही साथ में बीजेपी के लिए राहत की बात है। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी जिन पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी, उन्होंने उसे पूरी तरह निभाया और सफल हुए। इस चुनाव से गुजरात में बीजेपी को एक बड़ा नेता मिला है, विजय रुपाणी, जिनका कद अब बढ़ गया है। दरअसल ये चुनाव बीजेपी के लिए साख का सवाल बन गए थे। कांग्रेस ने 1995 के बाद से पहली बार पूरे जी जान से चुनाव लड़ा था। राहुल गांधी ने जी तोड़ मेहनत की थी। 2012 में जब बीजेपी ने चुनाव जीता था तो उस समय नरेंद्र मोदी बतौर मुख्यमंत्री जनता के सामने थे।
उनके अलावा बीजेपी का परंपरागत वोटबैंक भी उसके साथ था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में ये दोनों फैक्टर बीजेपी के साथ नहीं थे। पाटीदार जो हमेशा से बीजेपी के साथ रहे हैं, वो इस चुनाव में हार्दिक पटेल के साथ जाते दिख रहे थे। आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक ने जो आंदोलन शुरू किया था उस से निपटने में आनंदीबेन नाकाम रही थीं, पाटीदारों की नाराजगी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर रही थी। साथ ही दलितों और पिछड़ों ने भी सामाजिक आंदोलन छेड़ दिया था। अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेता उभर आए थे। कुल मिलाकर बीजेपी विपरीत परिस्थितियों में चुनाव मैदान में उतरी थी। पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी के सामने कहीं ज्यादा मुश्किलें थीं।
जब गुजरात में आंदोलन चरम पर थे, तो उस समय बीजेपी ने आनंदीबेन को हटाकर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। रुपाणी के सामने कई मुश्किलें थीं। सबसे पहले उनको पाटीदारों की नाराजगी दूर करनी थी, उसके बाद तेजी से बीजेपी के खिलाफ जा रहे सामाजिक समीकरणों को बदलना था। इस काम में वो कामयाब हो गए हैं। पाटीदारों की नाराजगी रुपाणी के सीएम बनने के बाद कम हुई, उना में दलितों के साथ हुई घटना के बाद जिस तरह से उन्होंने मामले को संभाला है, उस से भी बीजेपी को राहत मिली है। चुनाव प्रचार के मोर्चा पर भी रुपाणी आगे रहे, इस तरह से देखें तो बीजेपी की जीत का श्रेय रुपाणी को भी मिलना चाहिए, नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद अब वो गुजरात से बीजेपी के तीसरे बड़े नेता बन कर उभरे हैं।
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