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भगवान नए साल पर मायावती को ‘सदबुद्धि’ जरुर दीजिएगा

वैसे तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती को सदबुद्धि की बहुत जरूरत है। लेकिन, वो खुद की बजाए बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इसकी कामना करती हैं।

New Delhi Jan 01: बहुजन समाज पार्टी की अध्‍यक्ष मायावती ने नए साल के बहाने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। मायावती का कहना है कि कुदरत नए साल में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदबुद्धि दे। ताकि ये लोग नए साल पर जनविरोधी नीतियों को ना लागू कर पाएं। बीजेपी और प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए मायावती ने अपने बयान में नोटबंदी और जीएसटी का भी जिक्र किया। बेशक बहन जी बीजेपी और मोदी के लिए भगवान से सदबुद्धि की कामना कर रही हो लेकिन, हकीकत ये है कि सदबुद्धि की जरूरत मायावती को है। अगर उन्होंने सदबुद्धि के साथ नए साल में काम किया तो यकीनन 2019 तक वो अपना खोया जनाधार वापस पा सकती हैं। नहीं तो उनकी जमीन खिसकने से कोई नहीं रोक सकता।

मायावती का कहना है कि बीजेपी और मोदी को नए साल में घोर जनविरोधी नीतियों को लागू करने से बचना चाहिए। यकीन मानिए अगर केंद्र सरकार की नीतियां जनविरोधी होती तो किसी भी सूरत में देश की जनता बीजेपी को बर्दास्‍त नहीं करती। अगर केंद्र सरकार का जनता कुछ नहीं बिगाड़ पाती तो कम से कम राज्‍यों से उसे जरुर उखाड़ फेंकती। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा है। मायावती सरीखे नेताओं को केंद्र सरकार की जो नीतियां जनविरोधी लगती हैं जनता उन्‍हीं नीतियों को सराहती है। अब गुजरात और हिमाचल के ही चुनाव ले लीजिए। अगर जनता बीजेपी से नाराज होती जनता गुजरात में बीजेपी को वापसी नहीं करने देती। अगर जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज होती होती हिमाचल की सत्‍ता कांग्रेस से छीनकर बीजेपी को ना सौंपती।

मायावती को ये समझना होगा कि उनके तमाम विरोध के बाद भी जनता क्‍यों बीजेपी और मोदी को सराह रही है। उनकी नीतियों की तारीफ हो रही है। 19 राज्‍यों में बीजेपी की और उसके गठबंधन वाली सरकारें हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए ये बड़ी उपलब्धि है। जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस सिर्फ पांच राज्‍यों में ही सिमट कर रह गई है। कांग्रेस का जनाधार खत्‍म होता जा रहा है। मायावती को कांग्रेस के जनाधार के साथ-साथ अपना जनाधार भी देखना होगा। मायावती की जो पार्टी एक समय में यूपी की सत्‍ता पर राज करती थी आज उसे बीस सीटें जीतने में भी लाले पड़ जाते हैं। मायावती सरीखे नेताओं को जनता की नब्‍ज पकड़नी होगी। जनता के हिसाब से मुद्दों को तय करना होगा। ना कि अपने हिसाब से।

नोटबंदी नेताओं को बुरी लगती है। लेकिन, जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ऐतिहासिक फैसले को सराहा है। जीएसटी को लेकर कुछ लोगों में नाराजगी हो सकती है। लेकिन, बड़ा तबका इससे भी खुश है। उसे उम्‍मीद है कि कम से अब टैक्‍स चोरी और राज्‍या में टैक्‍स के नाम पर होने वाली गड़बड़ी तो नहीं होगी। इतनी समझदार तो जनता भी है। उसे भी सब कुछ पता है। मायावती को ये समझना होगा कि आखिर उनका वोट बैंक उसने क्‍यों दूर जा रहा है। झूठ की राजनीति अब ज्‍यादा दिनों तक नहीं चल सकती है। सदबुद्धि की जरुरत मायावती को है। नए साल में ये सदबुद्धि शायद नेताओं के ज्ञान के दरवाजों को खोल दे। ताकि वो समझ सकें कि जनता को क्‍या चाहिए। अपनी सोच उन पर ना थोपें।   

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