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पीएम मोदी की ‘घरेलू’ डिप्लोमेसी, बस ‘ड्राइंगरूम’ की शक्ल बदल गई है

पीएम मोदी डिप्लोमेसी को नए आयाम दे रहे हैं, पहले विदेशी नेताओं के स्वागत का ड्राइंगरूम दिल्ली होता था, अब उसकी शक्ल और जगह बदल रही है।

New Delhi, Jan 18: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत यात्रा पर हैं, उनके साथ पीएम मोदी के संबंध काफी अच्छे हैं, दोनों की कैमिस्ट्री लाजवाब बताई जाती है, मोदी ने नेतन्याहू को गुजरात की सैर भी कराई है, यही एक लाइन चर्चा का केंद्र है, आखिर क्या कारण है कि मोदी अपने हर विदेशी मेहमान को गुजरात दिखाते हैं, अहमदाबाद घुमाते हैं, झूला झुलाते हैं, गुजरात के अलावा भी देश में बहुत से राज्य हैं, बहुत से दर्शनीय स्थल हैं. लेकिन मोदी हमेशा गुजरात ही ले कर जाते हैं इन नेताओं को। इसके पीछे कारण क्या है, क्या ये मोदी की नई घरेलू डिप्लोमेसी है। जिसके तहत वो दुनिया के ताकतवर नेताओं को शानदार ड्राइंगरूम दिखाते हैं. पहले ये ड्राइंगरूम दिल्ली हुआ करता था, अब उसका पता और शक्ल बदल गई है।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने दुनिया के कई बड़े नेताओं की मेजबानी की है, खास बात ये है कि मेजबानी के लिए अहमदाबाद केंद्र बन गया है, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से शुरु हुआ ये सिलसिला नेतन्याहू तक आ गया है, इसके बीच में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी हैं।इसको लेकर रणनीतिकार भी सवाल खड़ा करते रहे हैं। क्या कारण है कि मोदी के लिए अहमदाबाद इतना महत्वपूर्ण है। इसके पीछे कुछ कारण हो सकते हैं, भारत में औद्योगिक विकास के मामले में गुजरात पहले नंबर पर है। विदेशी नेताओं को गुजरात दिखाने के बहाने पीएम मोदी विकास मॉडल पर मुहर लगवाते हैं। वो अपने मुख्यमंत्री काल में किए गए विकास को पेश करते हैं। गुजरात दुनिया के किसी भी औद्योगिक क्षेत्र से कम नहीं है ये दिखाने की कोशिश करते हैं।

पीएम मोदी की इस रणनीति पर बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने अपनी राय रखी है, उनका कहना है कि ये न्यू इंडिया की न्यू डिप्लोमेसी है। अगर पारंपरिक तरीकों से विदेशी मेहमानों को होस्ट किया जाता तो शायद इतना कवरेज नहीं मिलता। इस तरह से देश के अलग अलग हिस्मों में विकास की तस्वीर दुनिया के सामने जाती है। उनका ये भी कहना है कि मोदी वैश्विस डिप्लोमेसी मं जनता को शामिल कर रहे हैं, इस से दो देशों के संबंधों में जीवंतता आती है। जीवीएल नरसिम्हा का ये कथन उनकी अपनी राय हो सकता है। लेकिन इस से राजनयिक सहमत नहीं है। उनका मानना है कि दो देशों के संबंधों में प्रतीकों का ज्यादा महत्व नहीं होता है।

हो सकता है कि जिसे हम अपनी कामयाबी समझ रहे हों, वो दूसरे देश के लिए मायने ही नहीं रखता हो। हो सकता है कि उस देश की प्राथमिकताएं अलग हों। अब ये समझने वाली बात है, पीएम मोदी एक नहीं कई बार गुजरात से अपने संबंधों के बारे में बात कर चुके हैं। हालिया गुजरात चुनाव में उन्होंने गुजराती भाषा में ही सारी रैलियां की थी। उनका कनेक्शन बहुत स्ट्रॉन्ग है। लेकिन ये भी सवाल है कि वो देश के अलग अलग राज्यों में क्यों नहीं विदेशी मेहमानों को ले जाते हैं, केवल गुजरात ही क्यों. इसका जवाब ये हो सकता है कि बतौर मुख्यमंत्री मोदी ने गुजरात में जो भी काम किया है वो उसकी चर्चा को कम नहीं होने देना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि गुजरात का विकास मॉडल चमकता रहे। इसी के दम पर तो वो प्रधानमंत्री की गद्दी तक पहुंचे हैं। कह सकते हैं कि घरेलू डिप्लोमेसी की नई परिभाषाएं गढ़ रहे हैं नरेंद्र मोदी.

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