New Delhi, Jan 22: सरकार का आर्थिक प्रबंधन (अर्थव्यवस्था) फिसलन पर है। उसका वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है। साल भर यही दावा होता है कि सब कुछ नियंत्रण में है बस आख़िर में पता चलने लगता है कि वित्तीय घाटा 3.4 प्रतिशत हो गया है। वित्त वर्ष 17-18 के लिए जितनी बजट ज़रूरत तय की गई थी, उसे पूरा करना मुश्किल होता जा रहा है। विश्लेषकों का अनुमान है कि सरकार को बाकी के चार महीनों के लिए 4.3 खरब रुपयों का इंतज़ाम करना होगा। इस बार बजट में अप्रत्यक्ष कर संग्रह का लक्ष्य 9.26 खरब रुपये का रखा गया था मगर अनुमान है कि 31 मार्च तक 5 खरब रुपये ही हो पाएगा। राज्यों ने भी जीएसटी के कारण राजस्व संग्रह में घटौती की शिकायत की है।
इस कारण रेलवे को इस वित्त वर्ष में जितना पैसा मिलना था उससे 13 फीसदी कम मिलेगा। यह बहुत बड़ी कटौती है। नए बजट में 27 फीसदी कटौती के अनुमान हैं। रेल मंत्री चाहें जितना दावा कर लें कि हम बिना सरकार की मदद के चला लेंगे लेकिन हकीकत यह है कि इसका असर पड़ेगा। यही वजह है कि नौजवान नौकरी का इंतज़ार कर रहे हैं, नौकरी आ नहीं रही है। रेलवे सबसे अधिक नौकरी देती है। अब रेलवे को अपनी नौकरी ख़ुद करनी होगी। उसे बाज़ार से लोन लेना होगा, अपनी संपत्ति बेचनी होगी। हम इस नौबत पर क्यों पहुंचे, साढ़े तीन साल में ऐसा क्या कुशल प्रबंध हुआ कि आज रेलवे इस हालात पर है। सरकार रेलवे को पैसे देने के अपने वादे पर कायम नहीं हो पा रही है।
रेल की सुविधाएं कितनी बेहतर हो रही हैं, आप यात्री बेहतर बता सकते हैं। केंद्रीय बजट में 2017-18 के लिए रेलवे के लिए जो
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