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राहुल गांधी फिर से तुष्टिकरण की राह पर, वोटबैंक के लिए नहीं किया ये काम

राहुल गांधी बदलाव का दिखावा करते हैं, अंदर से वो कांग्रेसी ही है, जिसके लिए मुस्लिम एक वोटबैंक हैं और उनको नाराज करने का जोखिम नहीं लिया जा सकता है।

New Delhi, Jan 22: पिछले कुछ समय से राहुल गांधी के नए अवतार की चर्चा हो रही है, पहली बात तो ये चर्चा ही समझ से परे है, कोई नेता किस तरह की रणनीति बना रहा है, वो क्या कर रहा है इस पर चर्चा होने के बजाय इस बात पर चर्चा होनी चाहिए कि वो उसकी नीतियों से देश को कितना भला होगा। राहुल मंदिर जाने लगे तो मीडिया ने कहा कि वो सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर हैं, जबकि सॉफ्ट हिंदुत्व नाम की कोई चीज ही नहीं है, हिंदुत्व केवल हिंदुत्व है। इसे कट्टर और सॉफ्ट अपनी सुविधा के हिसाब से नेता बनाते हैं। बहरहाल जिस तरह से राहुल ने खुद को जनेउधारी हिंदू बताया शिवभक्त कहा उसके बाद लगा कि वो तुष्टिकरण की राजनीति त्याग देंगे, लेकिन गांधी परिवार इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है।

वोटबैंक के लिए राहुल गांधी ने वो काम नहीं किया जो उनको करना चाहिए था, हाल ही में इजरायल के प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आए थे, एक सामान्य प्रोटोकॉल के तहत जब भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष आते हैं तो उनसे देश के तमाम नेता मिलते हैं, इनमें मुख्य विपक्षी दल का अध्यक्ष का भी नाम शामिल होता है, लेकिन राहुल ने बेंजामिन नेतन्याहू से मिलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई, बल्कि वो तो नरेंद्र मोदी और नेतन्याहू के गले मिलने का मजाक बना रहे थे। दरअसल राहुल भी कांग्रेस की उसी परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं, जिसके मुताबिक इजरायल के साथ संबंध रखने का मतलब है कि एक खास वोटबैंक नाराज हो जाएगा, उसी नाराजगी से बचने के लिए राहुल ने नेतन्याहू से मिलना मुनासिब नहीं समझा।

कांग्रेस की इसी नीति के कारण दशकों तक भारत और इजरायल के संबंध उभर नहीं पाए, कांग्रेस की सरकारों ने कभी खुल कर इजरायल का समर्थन नहीं किया, उसके दर्द को नहीं समझा, केवल इसलिए कि उसका कथित वोटबैंक नाराज हो जाएगा, राहुल भी इस से अछूते नहीं है। जनेउधारी हिंदू और शिवभक्त होने का दावा चुनाव के समय करने वाले राहुल परीक्षा की घड़ी में भाग खड़े हुए, नेतन्याहू से मिलकर वो ये साबित कर सकते थे कि वो कांग्रेस की पुरानी परंपराओं को तोड़ रहे हैं। वो देश की विदेश नीति का समर्थन करते हैं, अब जब भारत औऱ इजरायल के संबंधों में सुधार हो रहा है तो मुस्लिम वोटबैंक खोने के डर से राहुल उस पर चुप्पी साधे हुए हैं। वो मोदी और नेतन्याहू के गले मिलने का मजाक बनाते हैं, जिस से उनके मुस्लिम वोटबैंक को हंसने का मौका मिले।

राहुल गांधी को ये समझना होगा कि इजरायल भारत का दोस्त है, उस ने न जाने कितने ही मौकों पर भारत का साथ दिया है, विदेश नीति की बारीकियों को राहुल को समझना होगा, मोदी सरकार फिलिस्तीन के हितों के साथ समझौता किए बगैर इजरायल के साथ दोस्ती को नए आयाम पर ले जा रही है। शायद इसी से राहुल परेशान हैं, वैसे शंका तो इस बात की भी कि राहुल को विदेश नीति के बारे में कुछ पता भी है या नहीं। इसका कारण ये है कि वो विदेश में जाकर अपने ही देश की सरकार पर हमला करते हैं, कांग्रेस की वंशवादी परंपरा का समर्थन करते हैं, इस तरह से वो मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश करते हैं, काश वो ये समझ सकते कि आप सरकार से असहमत हो सकते हैं और उसके खिलाफ आंदोलन कर सकते हैं लेकिन इसके लिए विदेशी मंच काम नहीं आता है, वोट तो देश की जनता ही करेगी।

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