New Delhi Feb 06 : क्या जेडीयू के बागी नेता शरद यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर सकते हैं या करा सकते हैं ? सियासी गलियारों में ये सवाल कौंध रहा है। हालांकि इस बारे में शरद बाबू कुछ कहते तो नहीं हैं। लेकिन, उन्हें बेहद करीब से जानने वाले लोग ये जरूर कहते हैं कि वो खुद के भीतर देश का प्रधानमंत्री बनने की काबिलियत जरुर देखते हैं। विपक्षी एकता ने एचडी देवगौड़ा की किस्मत भी ऐसे ही चमकाई थी और उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया था। किस्मत कब किसकी तकदीर बदल दे कहा नहीं जा सकता। हालांकि शरद यादव प्रधानमंत्री पद के लायक हैं या नहीं इस पर लोगों की राय जुदा-जुदा हो सकती हैं। लेकिन, वो खुद को इस काबिल समझते हैं इस बात को कोई और भला कैसे नकार सकता है। इस वक्त शरद यादव जिस डगर पर चल रहे हैं उसकी मंजिल भी यही दर्शाती है कि वो खुद के ही जुगाड़ में लगे हैं।
दरसअल, शरद यादव हमेशा से थर्ड फ्रंट के पक्षधर रहे हैं। इस बार भी वो 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर कुछ इसी तरह की रणनीति अपनाने में जुटे हुए हैं। एक वक्त में विपक्ष के भीतर उनका रुतबा भी था और रसूख भी। भले ये बात शरद यादव समझे या ना समझें पर सियासी गलियारे में उनकी इज्जत आज भी है लेकिन, अब ना तो वो रुतबा रहा है और ना ही रसूख। फिर भी जुगाड़ पॉलिटिक्स जारी है। 2019 के नए सियासी समीकरण के जुगाड़ में शरद यादव ने आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव से भी मुलाकात की। वो उनसे मिलने के लिए रांची की बिरसा मुंडा जेल पहुंचे। खास बात ये है कि लालू यादव से इस मुलाकात में वो अकेले नहीं थे। वो अपने साथ झारखंड विकास मोर्चा यानी JVM के प्रमुख बाबूलाल मरांडी को भी ले गए थे। दोनों ही नेताओं ने लालू का हालचाल लिया और संक्षेप में भविष्य की रणनीति पर चर्चा की।
इसके साथ ही शरद यादव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेने से भी फोन पर बात की। ऐसे में माना जा रहा है कि शरद यादव बिहार और झारखंड के नेताओं को मिलाकर एक नया गठबंधन तैयार करने की कोशिश में हैं। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि शरद बाबू इस वक्त भारतीय जनता पार्टी के बागी नेता यशवंत सिन्हा के भी संपर्क में हैं। मोदी के खिलाफ दोनों का राजनैतिक ज्ञान खूब आदान-प्रदान हो रहा है। दरअसल, शरद यादव को पता है कि अगर उन्होंने यूपी, बिहार और झारखंड के विपक्ष के बड़े नेताओं को साध लिया तो 2019 में उन्हें सियासी सौदेबाजी करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। हर किसी को पता है कि लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के परिवारिक संबंध हैं। आजकल लालू यादव की जितनी अखिलेश यादव से बनती है उतनी मुलायम सिंह से नहीं बनती और समाजवादी पार्टी में इस वक्त अखिलेश यादव की ही चल रही है।
यानी शरद यादव की इन सभी बातों पर बारीक नजर हो सकती है। वहीं शरद बाबू को ये भी पता है कि लेफ्ट का रुख यूपीए को लेकर हमेशा से असमंजस वाला रहा है। ये भी तय है कि 2019 से पहले-पहले लेफ्ट में भी तमाम फाड़ होंगे। सीताराम येचुरी एक दिशा में चलते हैं तो वहीं प्रकाश करात की राहें एकदम जुदा है। दोनों क बीच कोल्ड वॉर चल रहा है। इसका फायदा भी शरद यादव उठा सकते हैं। यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में शरद यादव विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इसमें भी कोई शक नहीं है कि वो थर्ड फ्रंट की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी भी किसी और से पेश करा दें। क्योंकि यूपीए की ओर से राहुल गांधी का नाम अभी से इस पद के लिए तय हो गया है। हालांकि कई विपक्षी दल राहुल गांधी के नाम से सहमत नहीं है। ऐसे दलों के पास स्वतंत्र रुप से चुनाव लड़ने के अलावा शरद यादव के साथ जाने का भी विकल्प होगा। जिसमें नुकसान बेशक किसी का भी हो लेकिन, फायदा सिर्फ शरद बाबू का ही होगा।
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