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हमें हमारा वतन चाहिये, जो कहीं खो गया है

हमारा सामान्य व्यवहार , हमारा समाज, हमारे सपने तक इन्हीं से आरंजित हैं, खाए पीये लोगों को देश से ज्यादा चिंता देशभक्ति की है।

New Delhi, Feb 09 : इनदिनों नफरत का बाज़ार खूब गर्म है, ऐसा माहौल बना दिया गया है जैसे सारा देश हिंसा का समर्थक हो। हर टुच्चा, लुच्चा राष्ट्रवाद का ढ़ोल पीट रहा है, सबसे गंभीर बात है कि इस मुहीम में कुछ महिलाएं भी शामिल हैं। नफ़रत के कारोबार ने हमारे सोचने के ढंग को बदल दिया है। हमारा सामान्य व्यवहार , हमारा समाज, हमारे सपने तक इन्हीं से आरंजित हैं .खाए पीये लोगों को देश से ज्यादा चिंता देशभक्ति की है . इनकी देशभक्ति का मतलब है अल्पसंख्यकों से जबरन भारत माता की जय कहलाना।

इनकी देशभक्ति का मतलब है धर्म और जाति के नाम पर उन्माद पैदा करना, इस भक्तों से पूछना चाहती हूँ कभी गए हो उन किसानों के पास जो भूख से लड़ते हुए आत्महत्या कर रहे हैं, क्या हर रोज हिंसा की शिकार हो रही महिलाओं के लिए न्याय मांगने गए हो ? इस वक़्त इनका गौरब जागा है।  करणी सेना कहती है हमने ये सिद्ध कर दिया है कि हम जनखे नहीं हैं। हर रोज हमारी बच्चियां मारी जा रही हैं, बलात्कार की शिकार हो रहीं हैं सेना की बहादूरी कहाँ गयी ? इससे शर्मनाक बात क्या होगी अपने ही वतन के लोग अपने ही तिरंगे के नाम पर मारे जा रहे हैं, मुझे ऐसे तमाम गौरव से नफ़रत है जो मनुष्यता को शर्मशार करे। 

जिस भद्दे तरीके से तिरंगा यात्रा के नाम पर कत्लेआम हुए जिस तरह हमारी नयी पीढ़ी को नफ़रत की आग में झोंक दिया गया क्या यही राष्ट्रवाद है ? ऐसे नकली देशभक्त को कौन नहीं जानता । जिनलोगों को अपनी आजादी के इतिहास का पता नहीं, जिन्होंने कभी आजादी के आन्दोलन में हिस्सा नहीं लिया आज वही सबसे बड़े देश भक्त बने हुए हैं, जिनके पूर्वज अंग्रेजो से हाथ मिला लिया आज उसी गुरु माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को सबसे बड़ा देश भक्त साबित करने में लगे हैं। जरा हमारे देश के असली लोगों की जिन्दगी में शामिल होकर देखें किस तरह वे अपने देश और लोगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हमारा देश तक़रीबन १०० करोड़ से ज्यादा लोगों का देश है, प्रगति के मानवीए इंडेक्स पर हमारी गिनती १७५ देशों से १३८ नंबर पर होती है। ४० करोड़ लोग अशिक्षित हैं, और घोरतम गरीबी में जी रहें हैं। ६० करोड़ लोगों के पास पशुओं से बेहतर जीवन जीने के लिए न्यूनतम साधन नहीं है । 20 करोड़ लोगों के पास पीने का पानी नहीं है, पर इनके लिए राष्ट्र गौरब इनका नहीं जागता। हमारा गौरब उनलोगों से है जो मनुष्यता में यकीं करते हैं .हमारा गौरब उनसे है जो एक दूसरे के साथ प्रेम से जीना चाहते हैं। हमारा गौरब उनसे है जो भाषा और धर्म की दीवार खड़ी नहीं करते, हमारी इस टूटी फूटी दुनिया में भी खूबसूरती है, बहुत कुछ बहुमूल्य है, चारुलता जो कि हमारी है, जिसे हमसब ने संजोया है , संवारा है , नया रूप दिया है . हमें हमारा यही वतन चाहिए . जो कही खो गया है, क्या आप मेरे साथ चलेंगे अपने इस वतन की खोज में। 

(निवेदिता शकील के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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