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एक कहानी सिंगापुर की सरकार और उसके फैसले की

बजट जब सरप्लस हुआ तो इस साल सिंगापुर सरकार ने बचे हुए पैसे आम जनता में बांट देने का निर्णय किया। ये क्रांतिकारी फैसला है।

New Delhi, Feb 23: अपने इस देश में तो समय- समय पर धर्म तेजा, क्वोत्रोचि,माल्या और नीरव मोदी जैसे आधुनिक ‘वारेन हेस्टिंग्सों’ से देश को लुटवाने की छूट दे दी जाती है और उसकी भरपाई के लिए जनता पर टैक्स बढ़ा दिया जाता है। इस पृष्ठभूमि में अपने देश के लोगों को सिंगापुर की ताजा कहानी सुनकर अजीब लगेगा। पर क्या इस कहानी पर हमारे नये -पुराने हुक्मरानों को शर्म आएगी ? सिंगा पुर को ऐसा किसने बना दिया जो वहां सरकार का बजट सरप्लस हो जाए ? उस देश को ऐसा बनाने वाले का नाम था ली कुआन यू। उनका जन्म 1923 में और निधन 2015 में हुआ।  ली कुआन कहा करते थे कि भारत में अपार संभावनाएं हैं ।पर उसे घिसे -पिटे समाजवादी नीतियों से बाहर निकलना होगा।

सन 1959 से 1990 तक ली कुआन सिंगा पुर के प्रधान मंत्री थे।उन्होंने दूरदर्शिता और कठोर परिश्रम से सिंगा पुर को एक अमीर देश बना दिया।वे कहा करते थे कि व्यक्तिगत अधिकारों से अधिक जरूरी है सार्वजनिक कल्याण।उन्होंने थोड़ी कड़ाई जरूर की ,पर उनमें कम्युनिस्ट तानाशाही वाली क्रूरता नहीं थी। एक विश्लेषणकत्र्ता के अनुसार सिंगापुर का उदाहरण देख कर भारत को यह तय करना होगा कि वह आधुनिक ‘वारेन हेस्टिंग्सों’ को लूट की छूट देता रहेगा या सिंगा पुर की तरह कुछ कड़ाई करके उन्हें रोकेगा ? जरा हेस्ंिटग्स के बारे में दो शब्द।

1773 में वह भारत का गवर्नर जनरल बना था।पहले वह ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क था। चतुर चोर था। वह उन अंग्रेजों में शामिल था जिन्होंने इस सोने की चिडि़या को कंगाल बना दिया। भ्रष्टाचार के आरोप में उस पर 1788 में ब्रिटिश संसद ने महाभियोग भी चलाया था। —कुछ न करने के अनेक बहाने, 2015 में ली कुआन यू के निधन के बाद अपने देश के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने तरह -तरह के लेख लिखे। लिखा गया कि सिंगा पुर जैसे छोटे देश में ही ऐसा चमत्कार संभव है,भारत में नहीं। सवाल है कि इसी देश के एक राज्य केरल में क्यों आरोपितों में से 77 प्रतिशत अपराधियों को अदालतांंे से सजा दिलवा दी जाती है,पर पश्चिम बंगाल में यह प्रतिशत मात्र 11 है ?

क्यों दशकों के कम्युनिस्ट शासन के बावजूद कोलकाता के ग्रेट इस्टर्न होटल को निजी हाथों में दे देने को वाम मोर्चा सरकार मजबूर हो गयी थी ?  सरकार एक होटल को भी मुनाफे वाला उपक्रम नहीं बना सकती ? वह तो सिंगा पुर के मुकाबले बहुत छोटा उपक्रम है।  क्यों इसी देश में एक बस से शुरू करके निजी आपरेटर कुछ ही साल में दर्जनों बसों का मालिक हो जाता है और अधिकतर राज्य पथ परिवहन निगम घाटे में रहते हैं ?  इस देश के अधिकतर सार्वजनिक उपक्रम घाटे में क्यों चले गये ?क्या वे सिंगा पुर से बड़े थे ? दरअसल करने के बहुत रास्ते होते हैं और न करने के अनेक बहाने !

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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