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‘लोग कहते हैं कि रवीश कुमार ही असली विपक्ष हैं तत्काल इस सत्ता के’

रवीश कुमार को आप गाली दे लीजियेगा पर उस आदमी के उन सरोकारों को कैसे नजरअंदाज कर दीजियेगा जहां वो जरूरतमंदों की आवाज़ बन अपने तेवर के साथ खड़े हो जाते हैं।

New Delhi, Mar 11 : झारखण्ड के 70 हज़ार संघर्ष कर रहे शोषित पीड़ित पारा शिक्षकों के घर दुआर की तरफ से, एक शिक्षक के रूप में भी खट मर कर चार रोटी एक कटोरी दाल के लिए संघर्ष कर रहे बेटे बेटियों के माता पिता और अपने माँ बाप को एक शिक्षक के बावजूद अभावों से जूझते देख रहे बाल बच्चों की तरफ से ” रवीश कुमार” आपको सलाम ठोकता हूँ। पिछले साल दो साल से कई मिडिया के देहरी जा के घिघियाया कि ये दर्द स्क्रीन पे दिखा दीजिये। उन्होंने कहा, न्यूज़ में मसाला नही। मीडिया के एक वर्ग को मजबूरी और चुप्पी से घुट घुट रहे पारा शिक्षक के दर्द में मसाला नही दिखा इसलिए इसे दिखाना trp का माल नही लगा उनको।

लाख जतन के बाद भी नही समझा पाया उनको कि किसी की मजबूरी को माल समझ मत आंकिये और निर्णय लीजिये। पर कोई नही था सुनने वाला।
हार के सोंचा, रवीश कुमार हैं न?
पर मैं किस मुँह से जाता। कई पोस्ट उनके आलोचना में लिख के हज़ारों लाईक पाये थे मैंने। हाँ, किस मुँह से जाता?
पर सोंचना बस इतना था कि सत्तर हज़ार घर के संघर्ष का उठना ज्यादा जरुरी है, मेरा मुँह उठे न उठे।
आज के प्राइम टाइम में आखिर झारखण्ड के संघर्ष कर रहे अस्थायी शिक्षकों के आवाज को जगह मिल गयी, बल मिल गया है। मुट्ठी तान के देख रहा था प्राइम टाइम।

इसी समस्या के संदर्भ का हवाला देते हुए एक पोस्ट लगा दी थी मैंने उनके साथ। कितनों ने मुझे कितनी ही गालियां दीं। क्या क्या न कहा, बीमार, दलाल जैसे कई उपाधियों से दामन भर दिया मेरा। आज वो सारे बरसे पत्थर फूल से लग रहे मुझे।
रवीश कुमार को आप गाली दे लीजियेगा पर उस आदमी के उन सरोकारों को कैसे नजरअंदाज कर दीजियेगा जहां वो जरूरतमंदों की आवाज़ बन अपने तेवर के साथ खड़े हो जाते हैं। कुछ भी कर लीजिए, मुझे फिर गाली दीजिये पर उस रवीश कुमार के हिस्से का “जिन्दाबाद” नही छीन सकते आप। जिन्दाबाद रवीश कुमार। अभी इतने भी न कमजोर हुए हैं न मजबूर कि आपके लिए एक जोर का जिन्दाबाद भी न बोल सकें। ये आपके नियत को जिन्दाबाद है। मुझे फैन न समझियेगा, लड़ाई का सिपाही जानिये।

एक बात, लोग कहते हैं कि रवीश ही असली विपक्ष हैं तत्काल इस सत्ता के। मैं इससे असहमत हूँ। रवीश कुमार को विपक्ष का लठैत मत बनाइये। वो आदमी पत्रकारिता कर रहा है। असल में रवीश एक अभिभावक की तरह चलते नजर आते हैं इस दौर में। रवीश आतंक नही, आईना हैं सरकार के लिए।काश ऐसे चार छः रवीश कुमार और होते हमारे पास तो दावे से कहता हूँ कि देश का वर्तमान pm मेरा प्रिय नेता होता। अच्छे दिन आने ही आने थे। नियत तो दिखाईये। जय हो।

(नीलोत्पल मृणाल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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