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फ्रांस की कमाई, भारत की ठगाई तो नहीं ?

भारत और फ्रांस के संबंध वह रुप लेते जा रहे हैं, जो कभी भारत और रुस के थे।

New Delhi, Mar 12 : आजकल विदेशी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री टके सेर भारत आ रहे हैं और हमारे प्रधानमंत्री भी विदेश-यात्रा का कोई मौका नहीं चूकते। ऐसे में इन यात्राओं ने अपना महत्व खुद घटा लिया है लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुअल मेक्रों की यह प्रथम भारत-यात्रा एतिहासिक बन गई है। वे अंतरराष्ट्रीय सौर-सम्मेलन का उदघाटन करने भारत आए हैं लेकिन इस यात्रा ने भारत की विदेश नीति का एक नया आयाम खोल दिया है।

भारत और फ्रांस के संबंध वह रुप लेते जा रहे हैं, जो कभी भारत और रुस के थे। यद्यपि आजकल शीतयुद्ध का माहौल नहीं है और दो महाशक्ति खेमे भी नहीं बने हुए हैं लेकिन चीन का उदय पश्चिमी महाशक्तियों के लिए एक अघोषित चुनौती बन गया है। इस चुनौती का सामना करने के लिए आजकल अमेरिका भी भारत की पीठ थपथपा रहा है लेकिन भारत और अमेरिका का अनौपचारिक गठबंधन दो असमान राष्ट्रों के बीच है और फिर डोनाल्ड ट्रंप का कुछ भरोसा नहीं जबकि भारत और फ्रांस, दोनों महत्तम शक्तियां नहीं मध्यम शक्तियां है।

पुरानी संस्कृत की कहावत भी है कि जब दो लोगों के शील और व्यसन समान होते हैं तो उनमें मित्रता अच्छी निभती है। इसीलिए सुरक्षा परिषद् में भारत को स्थायी सीट दिलाने के मामले में फ्रांस का समर्थन हमेशा दो-टूक रहता है। अब मेक्रों की भारत-यात्रा के दौरान हुए 14 समझौतों का सार यह है कि ये दोनों राष्ट्र सामरिक, व्यापारिक, तकनीकी और शैक्षणिक दृष्टि से एक-दूसरे के इतने करीब आ रहे हैं कि इस नजदीकी को लगभग गठबंधन भी कहा जा सकता है। दोनों राष्ट्रों के बंदरगाहों का, सैन्य सुविधाओं का और विविध सैन्य-सहायता का दोनों देश परस्पर उपयोग करेंगे। दोनों राष्ट्रों ने इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध खुली लड़ाई का संकल्प किया है।

चीन की ‘ओबोर’ (महापथ) योजना का नाम लिए बिना दोनों ने उसे रद्द किया है। हिंद महासागर और प्रशांत-क्षेत्र में शांति बनाए रखने की घोषणा दोनों ने की है। भारत ने 58000 करोड़ रु. के 36 लड़ाकू रेफल जेट विमान भी खरीदे हैं। इनकी आसमानी कीमतों को लेकर काफी विवाद छिड़ा हुआ है। जेतापुर में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु बिजली घर भी शुरु करने का आश्वासन फ्रांस ने दिया है। ये सब तथ्य बहुत आकर्षक हैं लेकिन हम यह न भूलें कि भारत इस समय फ्रांस की कमाई का बहुत बड़ा स्त्रोत बन गया है। कहीं ऐसा न हो कि फ्रांस की कमाई होती रहे और हमारी ठगाई।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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