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किसानों की संवेदना देख पत्थर का दिल भी पिघल जाएगा, लेकिन संघियों पर कोई असर नहीं पड़ रहा

टाइम्स नाऊ को किसानों के हाथ में लेनिन की तस्वीरें दिख गईं लेकिन वह किसानों की फटी हुई एड़ियाँ नहीं देख पाया।

New Delhi, Mar 13 : झंडे का रंग लाल है और पैर से निकले ख़ून का भी रंग लाल है। इसीलिए तो कहता हूँ कि संघर्ष का रंग लाल था है और रहेगा।
किसानों के जज़्बे को मेरा सलाम। उन्होंने चलते-चलते थककर चूर हो जाने के बावजूद रात भर चलना जारी रखा ताकि दिन में महाराष्ट्र राज्य बोर्ड की परीक्षा देने जा रहे विद्यार्थियों को परेशानी नहीं हो। इस संवेदना को देखकर पत्थर का भी दिल पिघल जाएगा लेकिन सरकार की अंधभक्ति में डूबे संघियों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है।

वे पूरी ज़िंदगी हल चलाने वाले लोगों को सिर्फ़ इसलिए किसान मानने से इनकार कर रहे हैं कि इन लोगों ने अपने संघर्ष के बलबूते सरकार को कुछ कहने लायक नहीं छोड़ा है। टाइम्स नाऊ को किसानों के हाथ में लेनिन की तस्वीरें दिख गईं लेकिन वह किसानों की फटी हुई एड़ियाँ नहीं देख पाया। “जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई”। भाजपा सांसद पूनम महाजन ने कहा है कि इस आंदोलन के पीछे शहरी माओवादियों का हाथ है। उन्होंने शायद मुंबई की सड़कों पर किसानों को पानी पिलाते बच्चों को नहीं देखा। महिलाएँ अपने घरों से निकल कर किसानों के लिए भोजन का इंतज़ाम कर रही हैं। इस एकजुटता ने संघियों को हिला दिया है और वे अनाप-शनाप बयान देने लगे हैं।

सरकारों ने किसानों को बार-बार छला है। मंदसौर में किसानों पर गोलियाँ चलाई गई थीं। क्या सिर्फ़ बैंकों से लिया गया कर्ज़ माफ़ करने से किसानों को राहत मिल जाएगी? जवाब है ‘नहीं’। अधिकतर किसान कर्ज़ के लिए साहूकारों और कमीशन एजेंटों पर निर्भर होते हैं। लगभग 52 फ़ीसदी किसान परिवार कर्ज़ में डूबे हुए हैं।

हर साल लगभग 12,000 किसान आत्महत्या करते हैं। यही नहीं, प्रधानमंत्री फ़सल बीमा पर भी बात करने की ज़रूरत है। इससे सिर्फ़ बीमा कंपनियों को फ़ायदा हुआ है। रही बात फ़सल लागत की तो उसमें भी सरकार ने बेईमानी की है। लागत मूल्य में न तो मवेशियों पर साल भर होने वाले खर्च को जोड़ा गया है और न ही कटाई के बाद फ़सल को बाज़ार तक ले जाने के खर्च को। इसमें और भी कई कमियाँ हैं। किसान सरकार के झुनझुनों से ख़ुश होने के मूड में बिलकुल नहीं हैं। सरकार के भोंपू चैनल शोर मचाकर किसानों के असली मुद्दों पर बात नहीं होने देने की कोशिश करेंगे। लेकिन हमें शोर का मुकाबला इंकलाबी नारों से करना है। लड़ेंगे, जीतेंगे।

(छात्रनेता कन्हैया कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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