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‘नचनिया’ : ये किसी एक पार्टी या सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं हैं

अगर कथित बड़ा नेता एक जमाने की यशस्वी अभिनेत्री को ‘नचनिया’ कहकर उनका अपमान करने की धृष्टता करता है तो इसके लिए हिंदी क्षेत्र के बड़े हिस्से की सामाजिक- सांस्कृतिक बनावट और राजनीति में सामंती दबदबे का सिलसिला भी जिम्मेदार है!

New Delhi, Mar 13 : नृत्यांगना शब्द सभ्य समाज का आज एक सम्मानित शब्द है। पर विकृत-सामंती दिमागों ने हिंदी क्षेत्र में इसके लिए एक स्थानीय शब्द गढ़ा: ‘नचनिया’! कई बार शब्द अपना अर्थ और बोध बदलते हैं पर इस शब्द के साथ आज भी अपमान, हिकारत और ओछेपन का बोध जुड़ा हुआ है।

यूपी के ज्यादातर हिस्सों में सपा, भाजपा, कांग्रेस या इसी तरह की ज्यादातर पार्टियों में सामंती ऐंठन से भरे लोगों की भरमार है। ऐसे असभ्य और असंस्कृत लोग किसी अभिनेत्री या महिला नाट्य कर्मी के लिए अक्सर ‘नचनिया-गवनिया’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं। सिर्फ सियासत में ही नहीं, हमारे आम समाज में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है!

मुझे अच्छी तरह याद है, मेरे एक वरिष्ठ साथी की बेहद प्रतिभाशाली पुत्री जब नाटयकर्म में सक्रिय हुई तो कई ‘पढ़े-लिखे’ और अपने को ‘सभ्य समाज का हिस्सा’ समझने वाले उनके कुछ पड़ोसी और कुछेक मित्र भी कहते थे कि अमुक जी, अपनी बेटी को ‘नचनिया-गवनिया’ बनवा रहे हैं! ऐसी स्थिति आमतौर पर बंगाल, केरल, कर्नाटक या महाराष्ट्र जैसे अपेक्षाकृत सांस्कृतिक रूप से समुन्नत समाजों, खासकर उनके शहरी क्षेत्र में नहीं मिलेगी। इसलिए आज अगर सपाई से भाजपाई बना कोई कथित बड़ा नेता एक जमाने की यशस्वी अभिनेत्री को ‘नचनिया’ कहकर उनका अपमान करने की धृष्टता करता है तो इसके लिए हिंदी क्षेत्र के बड़े हिस्से की सामाजिक- सांस्कृतिक बनावट और राजनीति में सामंती दबदबे का सिलसिला भी जिम्मेदार है!

यह संयोग या अपवाद नहीं कि संस्कृति और राष्ट्रवाद के स्वघोषित ठेकेदारों को अपसंस्कृति और असभ्यता के ये प्रतीक-चरित्र पसंद आते हैं! कुछ समय पहले एक बड़ी महिला राजनीतिज्ञ को अपशब्द कहने वाले एक पार्टी पदाधिकारी की पत्नी को मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया गया था। ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे। और यह किसी एक पार्टी या सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं हैं। जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी अपसंस्कृति का फैलाव कुछ कम नहीं है।
ऐसी मानसिकता, सोच, संस्कृति और राजनीति के खिलाफ यूपी जैसे प्रदेशों में बहुत कम संघर्ष हुआ है। मंदिर-मस्जिद, लव-जेहाद, गौ-गुंडई से फुर्सत ही कहां है! इसी का नतीजा है कि असभ्य आचरण और अपशब्दों के लिए विवादास्पद हो चुके चरित्रों को भी आज कोई बड़ी पार्टी बड़ी बेशर्मी से माला पहनाकर अपने साथ जोड़ लेती है!
रही बात आदरणीया जया जी के सपा प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा में चौथी बार भेजे जाने का तो उस पर मैं पहले ही अपनी राय जाहिर कर चुका हूं!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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