New Delhi, Mar 15 : आज जो भी विद्वान-जन यह नारा दे रहे हैं, कि “मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम!” वे दरअसल या तो सपा के उम्मीदवार को मिले बसपा के समर्थन को समझने में अक्षम हैं या इतनी गंभीर बात को हवा में उड़ा रहे हैं. यह भी हो सकता है कि उन्हें यूपी की जानकारी ही न हो. आज यह तालमेल अखिलेश-माया का तालमेल है कोई मुलायम और कांशीराम का नहीं. आज से 23 साल पहले की स्थिति भिन्न थी और आज न अखिलेश मुलायम हैं न माया कोई कांशीराम हैं और सबसे बड़ी बात कि यह यादव-जाटव गठजोड़ भी नहीं है.
सत्य यह है कि आज दोनों के सामान शत्रु ‘जयश्रीराम नहीं’ बल्कि मोदी-शाह हैं. और अगर तालमेल न हुआ तो लोकसभा की तो सोचें नहीं, विधानसभा में जीरो हो जाएंगे.
आज ब्राह्मण, यादव और जाटव जैसी राजनीतिक रूप से तीनों क्रमशः प्रभावशाली जातियां हाशिये पर हैं. और पिछले तीस वर्षों में यादव भी ब्राह्मण बने हैं और जाटव भी उतने ही ब्राह्मणवादी बन गए हैं
मोदी और योगी के पीछे ब्राह्मण नहीं बल्कि गैर ब्राह्मण अगड़े हैं, गैर यादव पिछड़े हैं और गैर जाटव दलित हैं. इसलिए इन तीनों के वजूद का प्रश्न भी हैं.
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