Categories: indiaspeak

यूपी-बिहार के तीन उप-चुनाव नतीजेः सन् 2019 के लिए बड़े संकेत

यूपी : गोरखपुर और फूलपुर, दोनों स्थानों पर विपक्ष की जीत के खास मायने हैं। इससे एक संकेत तो बिल्कुल साफ है कि हमारे जैसे लोकतंत्र में कोई भी नेता या दल अपराजेय नहीं है।

New Delhi, Mar 15 : उत्तर प्रदेश और बिहार की तीन संसदीय सीटों के उप चुनाव के नतीजे सन् 2019 के संसदीय आम चुनाव के लिए बड़ा संकेत दे रहे हैं। दोनों राज्यों में तीन संसदीय सीटों पर उप चुनाव हुए थे। इनमें यूपी की दो और बिहार की एक सीट शामिल थी। यूपी में दोनों संसदीय सीटें गोरखपुर और फूलपुर क्रमशः मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के सांसद के रूप में इस्तीफा देने से खाली हुई थीं। दोनों नेताओं को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसलिए उन्हें संसद की सदस्यता छोड़नी पड़ी। लेकिन यूपी की इन दोनों वीवीआईपी सीटों पर बुधवार को हुई मतगणना के बाद भाजपा हार गई। दोनों पर बहुजन समाज पार्टी और अन्य विपक्षी दलों द्वारा समर्थित समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीत गये। उधर, बिहार की अररिया संसदीय सीट पर राष्ट्रीय जनता दल ने फिर बाजी मार ली। यह सीट राजद के वरिष्ठ नेता तस्लीमुद्दीन की मृत्यु के चलते खाली हुई थी। राजद ने उनके बेटे सरफराज आलम को प्रत्याशी बनाया था, जिन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को भारी मतों के अंतर से पराजित किया।

इस बार के उप चुनावों की सबसे बड़ी विशेषता रही, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दो धुर-विरोधी दलों का एक साथ आना। दोनों में किसी तरह का गठबंधन या मोर्चा नहीं था पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ शब्दों में ऐलान किया था कि उप चुनाव में उनकी पार्टी भाजपा को हराने वाले विपक्षी प्रत्याशियों का सक्रिय समर्थन करेगी। मायावती के इस बयान का उनके समर्थकों और बसपा के पारंपरिक मतदाताओं ने अक्षरशः पालन करके सबको चमत्कृत कर दिया। उधर सपा ने भी गोरखपुर सीट जीतने के लिए ज्यादा व्यापक नजरिया दिॆखाया। उसने स्थानीय स्तर पर सक्रिय निषाद पार्टी के युवा नेता प्रवीण निषाद को अपना टिकट दिया। निषाद पार्टी ने सपा में अपना विलय किया और पूर्वांचल में सक्रिय अन्य स्थानीय दलों ने भी सपा को समर्थन देने का ऐलान किया। इस तरह मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र मे विपक्ष ने पहली बार ऐसी राजनीतिक मोर्चेबंदी की।

गोरखपुर और फूलपुर, दोनों स्थानों पर विपक्ष की जीत के खास मायने हैं। इससे एक संकेत तो बिल्कुल साफ है कि हमारे जैसे लोकतंत्र में कोई भी नेता या दल अपराजेय नहीं है। दूसरा संकेत है कि सपा-बसपा अगर साथ होकर लड़ें तो उन्हें यूपी में हराना किसी के लिए भी आसान नहीं। गोरखपुर में तीन दशक से लगातार भाजपा जीतती आ रही थी। राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के अभ्युदय से पहले भी गोरखपुर में योगी का सियासी जलवा कायम था। इस बार तो भाजपा के परचम पर मोदी के साथ योगी का भी चेहरा था। पर दोनों चेहरे फीके पड़ गये और सपा-बसपा की साझा ताकत ने भगवा को पछाड़ दिया। योगी ने अपने क्षेत्र में दर्जन भर से ऊपर सभाएं कीं। कई कई मंत्री क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे। पर सपा-बसपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इस बार जमकर काम किया। शहरी क्षेत्रों के मुकाबले देहात के हलकेे में वोटिंग बेहतर रही। मतदान के दिन ही इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि भाजपा की मुश्किलें गोरखपुर में बढ़ सकती हैं। सन् 2014 के संसदीय और सन् 2017 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले मतदान प्रतिशत काफी कम रहा। शहरी क्षेत्र में मतदान प्रतिशत कम होने को भाजपा के मतों में कमी होने से जोड़ा गया। फूलपुर में दोनों पक्षों के प्रत्य़ाशी एक ही समुदाय से थे। सपा ने यहां भी एक युवा नागेंद्र पटेल को प्रत्याशी बनाया था। यह इलाका ओबीसी वर्चस्व का माना जाता है। अब यह बात साफ हो चुकी है कि यहां भी बसपा के समर्थन ने सपा का रास्ता आसान किया। यह महज संयोग नहीं कि नतीजों की घोषणा के बाद आज दोनों क्षेत्रो में सपा और बसपा के झंडे साथ-साथ लहराये गये। बुआ-भतीजा(मायावती-अखिलेश) जिन्दाबाद के नारे भी लगे। उल्लेखनीय है कि अखिलेश यादव अक्सर ही सुश्री मायावती को बुआ जी कहते हैं।

सन् 1995 के बाद यह पहला मौका है, जब यूपी की राजनीति में सपा-बसपा के कार्यकर्ता एक साथ दिखे हैं। दोनों दलों के बीच किसी तरह के गठबंधन के ऐलान केे बगैर उपचुनावों में दोनों ने एक साथ कांम किया है। राज्य में पहली बार सपा-बसपा सन् 1993 में साथ आये थे। लेकिन उनका साथ सन् 1995 के 2जून को खत्म हो गया। लखनऊ के कुख्यात गेस्ट हाउस कांड के चलते दोनों दलों के बीच शत्रुता की ऐसी खाई पैदा हुई, जो हाल तक बनी रही है। लेकिन इन दोनों उपचुनावों में पहली बार इस खाई के खत्म होने के संकेत मिल रहे हैं। क्या यह वाकई खत्म हो जायेगी और दोनों दल अगला चुनाव मिलकर लड़ेगे? यूपी ही नहीं, देश की राजनीति का यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है। अगर इसका जवाब हां में मिला तो निश्चय ही सन् 2019 के संसदीय चुनाव में यह बड़ा कारक बनेगा और तब अपराजेय समझे जाने वाले प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के लिए यह चुनाव उतना आसान नहीं होगा। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और सपा-बसपा की साझी ताकत हरेक सीट पर भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल पैदा करेगी।

बिहार में उपचुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ हो गई है कि लालू प्रसाद यादव के जेल भेजे जाने और नीतीश कुमार के पाला बदलकर भाजपा के साथ जाने के बावजूद बिहार में राजद की शक्ति कम नहीं हुई है। अररिया सीट जीतने के लिए भाजपा ने सांप्रदायिक विभाजन का खुलेआम सहारा लिया था। उसके प्रांतीय अध्यक्ष ने भरी सभा में कहा कि यहां राजद का प्रत्याशी जीता तो यह पूरा इलाका पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का गढ़ बन जायेगा। पर नतीजे से पता चलता है कि हिन्दू मतावलंबियों ने भी भाजपा अध्यक्ष की इस कथित चेतावनी को बेमतलब माना। बिहार के सीमांचल क्षेत्र की अररिया सीट पर तमाम कोशिशों के बावजूूद अगर भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में कामयाबी नहीं मिली तो यह बड़ी घटना है। लालू के बेटे और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अपनी सभाओं में बार-बार इसके लिए अपने समर्थकों को आगाह कर रहे थे कि सभी समुदाय के लोग एक होकर रहें और धर्म-संप्रदाय के आधार पर विभाजन मत पैदा होने दें। नतीजे से साफ है कि राजद इस मुहिम में सफल हुआ है। भाजपा के लिए दोनोे राज्यों के उपचुनाव नतीजे मायूस करने वाले हैं। त्रिपुरा की जीत की खुशी से इससे कुछ फीकी हुई है। आखिर यूपी में मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री दोनों की पारंपरिक सीटों पर उसके प्रत्याशियों की हार उसके लिए बहुत भारी है।

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के ब्लॉग से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
Leave a Comment
Share
Published by
ISN-2

Recent Posts

इलेक्ट्रिशियन के बेटे को टीम इंडिया से बुलावा, प्रेरणादायक है इस युवा की कहानी

आईपीएल 2023 में तिलक वर्मा ने 11 मैचों में 343 रन ठोके थे, पिछले सीजन…

10 months ago

SDM ज्योति मौर्या की शादी का कार्ड हुआ वायरल, पिता ने अब तोड़ी चुप्पी

ज्योति मौर्या के पिता पारसनाथ ने कहा कि जिस शादी की बुनियाद ही झूठ पर…

10 months ago

83 के हो गये, कब रिटायर होंगे, शरद पवार को लेकर खुलकर बोले अजित, हमें आशीर्वाद दीजिए

अजित पवार ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पर निशाना साधते हुए कहा आप 83 साल…

10 months ago

सावन में धतूरे का ये महाउपाय चमकाएगा किस्मत, भोलेनाथ भर देंगे झोली

धतूरा शिव जी को बेहद प्रिय है, सावन के महीने में भगवान शिव को धतूरा…

10 months ago

वेस्टइंडीज दौरे पर इन खिलाड़ियों के लिये ‘दुश्मन’ साबित होंगे रोहित शर्मा, एक भी मौका लग रहा मुश्किल

भारत तथा वेस्टइंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच 12 जुलाई से डोमनिका में खेला जाएगा,…

10 months ago

3 राशियों पर रहेगी बजरंगबली की कृपा, जानिये 4 जुलाई का राशिफल

मेष- आज दिनभर का समय स्नेहीजनों और मित्रों के साथ आनंद-प्रमोद में बीतेगा ऐसा गणेशजी…

10 months ago