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फ्लाईओवर के नीचे से ग़रीबों को भगाने का सुंदर इंतज़ाम

सरकार हमारा पैसा कहां ख़र्च करती है इसे लेकर थोड़ा सतर्क रहना चाहिए। हम वैसे ही शहरों पर ज़रूरत से ज़्यादा ख़र्च करते हैं मगर ग़लत प्राथमिकताओं पर। नतीजा यह होता है कि शहर के चमकाने के नाम पर अंधेरा बचा रह जाता है और कुछ समय बाद चमक भी फीकी रह जाती है।

New Delhi, Mar 21 : आपने देखा होगा कि दिल्ली भर के फ्लायओवर के नीच सौंदर्यीकरण चल रहा है। शायद केंद्रीय परिवहन मंत्रालय की तरफ से यह सजावट हो रही होगी। चारों तरफ के फ्लाईओवर के खंभों को भद्दे चित्रों से पेंट किया जा रहा है और उसके नीचे की ख़ाली जगह की बाड़बंदी हो रही है। फिर उसके भीतर सतही किस्म की आकृतियों से उसे कलात्मक रूप देने का प्रयास हो रहा है। जिसे देखकर आप वाह वाह करेंगे। मगर आप यह नहीं समझ पाएँगे कि महानगर की ज़िंदगी जो आपके साथ अश्लीलता बरतती है वही अश्लील नज़रिया आप ख़ुद भी दूसरे के जीवन के प्रति रखने लगते हैं।

फ्लाईओवर ग़रीबों और बेघरों का घर है। जो बहुतों को गंदा लगता है। तेज़ धूप, ठंड या बारिश के दिनों में शहरी ग़रीब यहाँ ठिकाना पाते हैं। लेकिन अब फ्लाईओवर की बाड़बंदी कर दी गई है। लोहे के ग्रिल लगा दिए गए हैं और भीतर नुमाइश की चीज़े उकेर दी गईं हैं या रख दी गई हैं। जिस सरायकाले खां बस अड्डे के फ्लाईओवर की यह तस्वीर है उसके नीचे स्टील का विशालकाय चरखा लगाया गया है। आप कहेंगे सुंदर है मगर है क्रूर । चरखा ग़रीबों का संबल था मगर उसके सहारे ग़रीब ही विस्थापित कर दिए गए। हम मिडिल क्लास के लोग वाक़ई अश्लील और बेहूदे होते जा रहे हैं।

यह सब इसलिए हो रहा है ताकि दिल्ली के ग़रीब शहरी और दुपहिया चालक उसके नीचे खड़े न हो सके।उसके नीचे रात न गुज़ार सकें। एयरपोर्ट से घर जाने के रास्ते में ओला उबर से झाँकने पर दिल्ली जगमगाती नज़र आए। लगे कि शहर कितना सुंदर है। कितना काम हुआ है। शहर साफ है। जबकि हकीकत में ऐसा बिल्कुल नहीं है इसलिए ऐसी जगहों पर सफाई का इमेज तैयार किया जा रहा है।

जनता से प्यार करने वाली सरकार होती तो उसके नीचे जनता के बैठने की व्यवस्था कर देती। सोने के लिए चबूतरे बना देती और शौचालय बना देती। मगर अब उन्हें वहां से भगाने के लिए सुंदरता का सहारा लिया जा रहा है। सरायकाले ख़ा बस अड्डे के भीतर बाहर यात्रियों के बैठने की व्यवस्था नहीं की गई है। धूप और बारिश से बचने के लिए कुछ नहीं है । सुंदरता की इसी समझ के कारण आधी से ज़्यादा दिल्ली गंध में रहती है। यह सुंदरता के नाम पर एक ग़रीब मुल्क में पैसे की बर्बादी है और सरासर निर्लज्जता है।
(NDTV से जुड़ें चर्चित पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)

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