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सुषमा को दोष क्यों दें ?

विपक्ष ने सिर्फ एक ही टेक लगा रखी थी कि सुषमा ने पहले बार-बार यह दावा क्यों किया था कि वे सब लोग सुरक्षित हैं और उनकी तलाश जारी है।

New Delhi, Mar 23 : भारत में राजनीति का स्तर कितना गिरता जा रहा है ? अब विरोधी दलों ने सुषमा स्वराज पर हमला बोल दिया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एराक के मोसुल में गुमशुदा 39 भारतीय लोगों की हत्या की पुष्टि क्या की, विरोधियों ने संसद में तूफान उठा दिया। उन्होंने सिर्फ एक ही टेक लगा रखी थी कि सुषमा ने पहले बार-बार यह दावा क्यों किया था कि वे सब लोग सुरक्षित हैं और उनकी तलाश जारी है।

विरोधियों का आरोप यह है कि सुषमा ने मृतकों के परिवारों के साथ धोखा किया। इन विरोधियों से कोई पूछे कि किसी प्रामाणिक जानकारी को प्राप्त किए बिना सुषमा यह कैसे कह देतीं कि वे सब मारे गए? मृतकों के परिवारों के साथ धोखा करने से सुषमा या सरकार को क्या फायदा होनेवाला था ? सुषमा स्वभाव से आशावादी करुणामय महिला हैं और मुसीबत में फंसे भारतीय की मदद करने में सदा अग्रसर रहती हैं। सुषमा के अथक प्रयत्नों से ही 2014 में 46 भारतीय नर्सों को इस्लामी आतंकियों के चंगुल से छुड़ाया गया था। उन्हीं की कोशिशों के कारण फादर एलेक्सिस और डिसूजा को अफगानिस्तान से बचाकर लाया गया था।

कई पाकिस्तानी मरीजों को विशेष वीजा देकर सुषमा ने उनकी जान बचाई। इसी कड़ी में उनके राज्यमंत्री और भारत के पूर्व सेनापति वी.के. सिंह तीन बार मोसुल गए और उन्होंने इन गुमशुदा भारतीयों की खोज के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। यह ठीक है कि इन मृतकों के बीच से भागकर बच निकले हरजीत मसीह के इस दावे पर सरकार ने भरोसा नहीं किया कि उसके सारे साथी मारे गए हैं लेकिन मसीह के पास दिखाने के लिए कोई ठोस प्रमाण नहीं था। अब भारत सरकार के अथक प्रयत्न से उन सब लोगों के शव खोज निकाले गए हैं और उनकी पहचान भी कर ली गई है।

सरकार उनके परिवारों की वित्तीय सहायता भी करेगी। ऐसे में विरोधियों द्वारा सरकार की टांग-खिचाई करने की बजाय मृतकों के परिवारों के लिए सहानुभूति और सहायता की पहल होनी चाहिए।इसके अलावा सरकार और विरोधी दलों का आग्रह यह होना चाहिए कि सीरिया और एराक जैसे युद्ध-स्थलों पर भारतीय नागरिकों को जाने से रोका जाए। रोजी-रोटी की तलाश में भारतीय नागरिकों केा अपनी जान हथेली पर रखना पड़ती है, क्या यह भारत के लिए सम्मान की बात है?

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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