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भगत सिंह के बहाने भारत-पाक सौहार्द

भगत सिंह ने फांसी लगने के पहले जेल से जो पत्र और लेख लिखे, उनसे पता चलता है कि उन पर मार्क्स और अराजकतावाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा था।

New Delhi, Mar 27 : शहीद भगत सिंह अब भारत और पाकिस्तान की मैत्री के सूत्रधार बनेंगे। हर 23 मार्च को अब उनकी पुण्यतिथि मनाई जाएगी। लाहौर में अब बड़ा समारोह हुआ करेगा, जिसे पाकिस्तानी और भारतीय मिलकर मनाया करेंगे। लाहौर में अब एक संग्रहालय भी बनेगा, जिसमें भगत सिंह के पत्र, उनसे संबंधित गुप्त सरकारी दस्तावेज, उनके लेख, उनके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें भी प्रदर्शित की जाएंगी। लाहौर के जिन घरों में उनका परिवार रहता रहा, उनको भी उचित महत्व दिया जाएगा। उनका स्मारक बनेगा और लाहौर की एक मुख्य सड़क भी उनके नाम पर रखी जाएगी। पाकिस्तानी सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। भारत और पाकिस्तान के जिन संगठनों के लगातार प्रयत्नों के कारण यह सब कुछ संभव हो रहा है, वे बधाई के पात्र हैं।

भगतसिंह का जन्म लाहौर में हुआ था और वे दयानंद एंग्लो-वैदिक कालेज में पढ़े थे। उनका परिवार पारंपरिक दृष्टि से सिख था लेकिन पिता लाहौर आर्यसमाज के सक्रिय नेता थे। स्वयं भगतसिंह भी आर्यसमाजी थे। वे अत्यंत प्रतिभाशाली और निडर युवक थे। वे सदाचारी और कट्टर देशभक्त थे। वे संध्या-हवन भी किया करते थे। भगत सिंह आर्यसमाज और कांग्रेस के महान नेता लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेना चाहते थे। उनकी हत्या करने वाले पुलिस अफसर जेम्स ए स्कॉट की बजाय भगत सिंह की पिस्तौल से दूसरा पुलिस अफसर जॉन सांडर्स मारा गया।

दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित आर्यसमाज दीवान हाल में पं. रामचंद्र शर्मा ‘महारथी’ रहा करते थे। अब से लगभग 50 साल पहले उनसे जब मेरी भेंट हुई तो उन्होंने बताया कि भगतसिंह आकर उनके पास दीवान हाल में रहते थे और ‘महारथी’ पत्रिका के संपादन में सहयोग करते थे। अब से लगभग 60 साल पहले इंदौर के सेट बद्रीलाल भोलाराम ने मुझे बताया था कि भगतसिंह इंदौर के पारसी मोहल्ले के आर्य सामज में भेष बदलकर रुके थे। मेरी बेटी डाॅ. अपर्णा वैदिक भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों पर आजकल एक शोधग्रंथ लिख रही है। उसने लाहौर, दिल्ली और लंदन के संग्रहालयों के गुप्त दस्तावेज खंगाले हैं। उसने मुझे बताया कि उत्तर भारत के ज्यादातर क्रांतिकारी आर्यसमाजी ही थे।

भगत सिंह ने फांसी लगने के पहले जेल से जो पत्र और लेख लिखे, उनसे पता चलता है कि उन पर मार्क्स और अराजकतावाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। उनके कुछ साथियों ने अंग्रेजों के लिए मुखबरी भी की थी लेकिन भगत सिंह की वीरता और बलिदान ने स्वाधीनता आंदोलन में नई जान फूंक दी थी। अब उनका स्मारक लाहौर में बनने से भारत-पाक सौहार्द बढ़ेगा, इसमें शक नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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