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पोरस जैसा जवाब चाहिए -Upendra Rai

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ हुए बर्ताव को टालना इसलिए भी मुश्किल है कि अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल को ताक पर रख कर अमेरिका के इस अपमानजनक और मनमाने रवैये से कई बार भारत को भी गुजरना पड़ा है।

New Delhi, Apr 02 : इतिहास की एक घटना इन दिनों समीचीन हो उठी है। पोरस को सिकंदर के दरबार में पेश किया गया था। दरबार में सिकंदर ने पोरस से पूछा कि तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया जाए? पोरस ने कहा था-जैसा सलूक एक राजा को दूसरे राजा के साथ करना चाहिए। न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी के कपड़े उतरवाये जाने के मामले को महज अमेरिका-पाक का मामला नहीं माना जा सकता बल्कि यह दो देशों के सम्मान और उनके शासकों की गरिमा से जुड़ा मामला है। अब्बासी के साथ हुई घटना खुद को दूसरों से श्रेष्ठ समझने की ठेठ अमेरिकी मानसिकता की परिचायक है। विश्व का हर देश, चाहे वह कितना ही छोटा या कमजोर हो, उसकी अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता होती है और उस देश के लोगों का अपना सम्मान होता है। पूरी विश्व बिरादरी अपेक्षा करती है कि उसके उच्च पदस्थ नेताओं और अधिकारियों के साथ दूसरे देशों में सम्मानजनक और शालीनतापूर्ण बर्ताव हो।

इसके लिए न्यूनतम अंतरराष्ट्रीय कानून भी हैं और प्रोटोकॉल भी। हालांकि, खुद पाकिस्तान वक्त-बेवक्त अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन में घिरा रहा है। मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाने को लेकर उसे विश्व के विरोध का सामना करना पड़ता रहा है। आतंकवाद को लेकर तो चेतावनियां भी मिलती रही हैं।इस विशेष मामले में भी यही कहा जा रहा है कि पाक प्रधानमंत्री को आतंकवाद के समर्थन का खमियाजा भुगतना पड़ा है। अमेरिका वीजा समेत पाक पर कई दूसरे प्रतिबंध लगाने वाला है। सत्ता संभालने के बाद से ही ट्रम्प प्रशासन ने न सिर्फ पाकिस्तान को आतंक को पनाह देने के मामले में कड़ी चेतावनियां दी हैं, बल्कि उसे दी जाने वाली सहायता राशि रोक कर उसे यह संदेश भी दे दिया है कि अमेरिका उसके बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर सकता। यह जायज भी है और भारत लंबे समय से इसकी मांग भी करता रहा है।लेकिन जानकारों का मानना है कि यहां मामला अलग है। पाक के साथ अमेरिका के हालिया बर्ताव से यह आशंका बलवती होती है कि खाकान के साथ जो हुआ वह जानबूझकर किया गया।

इसकी वजह पाकिस्तान का कूटनीतिक तौर पर चीन के साथ खड़ा हो जाना है न कि आतंकवाद। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ हुए बर्ताव को टालना इसलिए भी मुश्किल है कि अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल को ताक पर रख कर अमेरिका के इस अपमानजनक और मनमाने रवैये से कई बार भारत को भी गुजरना पड़ा है। ये पहला मौका नहीं है जब अमेरिका में सुरक्षा जांच के नाम पर विदेशी नेता या अधिकारियों को अपमानित किया गया हो, बल्कि यह उसका इतिहास रहा है। 2011 में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भी न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर इसी तरह की तलाशी से गुजरना पड़ा था। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी उनके जूते और उनकी जैकेट तलाशी के लिए ले गए थे। तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कह दिया था कि यह अस्वीकार्य है और अगर इस तरह की घटनाएं नहीं रोकी गई तो फिर अमेरिकी अधिकारियों को भी तलाशी से गुजरना पड़ सकता है। हालांकि, अमेरिका ने लिखित माफी मांगी थी। अमेरिका ने माना था कि सम्मानित व्यक्तियों के लिए जिस तरह की प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिए, उसका पालन नहीं हुआ था। उसने कहा था कि भविष्य में वह ऐसी घटनाओं का दोहराव रोकने के लिए कदम उठाएगा।इससे पहले 2002 और 2003 में पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडीस को भी वाशिंगटन के डलास इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कपड़े उतारकर तलाशी देनी पड़ी थी। इस मामले में भी भारत ने सख्त रुख अपनाया था।

2010 में तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को शिकागो एयरपोर्ट पर लम्बी पूछताछ की गई थी। भारतीय राजदूत मीरा शंकर की भी अमेरिका के मिसीसीपी हवाई अड्डे पर इसी तरह की तलाशी ली गई थी। मीरा शंकर ने अमेरिकी अधिकारियों को अपना परिचय भी दिया था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत हरदीप पुरी के साथ ह्यूस्टन एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के नाम पर अस्वीकार्य बर्ताव हुआ। भारत ने इन दोनों मामलों में कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसी के बाद अमेरिका ने विदेशी राजनयिकों के साथ सुरक्षा जांच की फिर से समीक्षा की बात कही थी।पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी के अपमान का खुलासा एक वीडियो से हुआ। खाकान अमेरिका यात्रा पर थे। एयरपोर्ट पर उनकी जांच के दौरान ही किसी ने यह वीडियो बना ली थी। वीडियो में साफ तौर पर अब्बासी को जांच के बाद अपने कपड़े पहनते हुए देखा जा सकता है।हालांकि कहा जा रहा है कि यह उनका निजी दौरा था। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि खाकान का पासपोर्ट उनके पाकिस्तानी प्रधानमंत्री होने की दलील देता है और इस तरह की जांच को गलत ठहराता है। इसके बावजूद एयरपोर्ट पर जांच के नाम पर उनके साथ जो बर्ताव हुआ उसे अपमानजनक ही माना जाएगा। इससे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि अमेरिका ने इस घटना के लिए अफसोस जताने तक की जरूरत नहीं समझी।इस मामले में चीन इकलौता ऐसा देश है जिसने अमेरिका के राष्ट्रपति को प्रोटोकॉल देने की जरूरत नहीं समझी। 2016 में जब जी-20 सम्मेलन में शरीक होने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा चीन पहुंचे, तो रेड कारपेट तो दूर उन्हें प्लेन से उतरने के लिए रोलिंग स्टेयरकेस तक उपलब्ध नहीं कराई गई। तब इस पर खुद अमेरिका ने आपत्ति जताई थी।दरअसल, जब कोई देश किसी दूसरे देश के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के साथ अपमानजनक बर्ताव करता है, तो यह उस व्यक्ति का नहीं, बल्कि उसके देश का अपमान होता है। इसलिए पाकिस्तान में तो इस घटना का तीखा विरोध हो ही रहा है, अन्य देशों से भी अमेरिका की इस मनमानी पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खाकान ने भले ही टकराव टालने की कोशिश की हो, लेकिन ऐसी घटनाओं से देश का नेतृत्व कमजोर होता है। जनता में असंतोष और हीन भावना का जन्म होता है। खाकान की इस यात्रा को व्यक्तिगत बताने का तर्क भी बेमानी है, क्योंकि इस यात्रा में उन्होंने अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस से मुलाकात की है। वास्तव में खाकान और उनके देश का अपमान हुआ है। इस बात को सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, सारे विश्व को मानना होगा और इस पर एतराज करना होगा।आखिर कभी तो पहल करनी ही होगी वरना शक्तिशाली राष्ट्र शेष दुनिया को अपना गुलाम समझते रहेंगे और उनका अपमान करते रहेंगे। गुटों में बंटे विश्व को यह समझना पड़ेगा और शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्षों को पोरस जैसा जवाब देना होगा। ताकि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र का सम्मान करे।

(वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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