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हंगामा है क्यों बरपा ?

दलितों के अधिकार और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बनाया गया यह कानून एक प्रगतिशील और ज़रूरी कदम था, लेकिन सच यह भी है कि इस क़ानून का दुरूपयोग भी बहुत हुआ है।

New Delhi, Apr 03 : एस.सी / एस.टी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के एक संशोधन के बाद कुछ दलित संगठनों द्वारा आज भारत बंद के आह्वान का समर्थन वस्तुतः क़ानून के राज का निषेध है। दलितों के अधिकार और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बनाया गया यह कानून एक प्रगतिशील और ज़रूरी कदम था, लेकिन सच यह भी है कि इस क़ानून का दुरूपयोग भी बहुत हुआ है। इस क़ानून का ही क्यों, आई.पी.सी की धाराओं सहित लगभग हर कानून का इस देश में खुलकर दुरूपयोग हुआ है। झूठा केस बनाने के लिए भी और बदले की नीयत से निर्दोष लोगों को फंसाने में भी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में वस्तुतः इस क़ानून के साथ कोई छेड़खानी नहीं की है। उसका कहना इतना भर है कि एस.सी / एस.टी एक्ट के मामलों में अभियुक्तों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए। दूसरे अर्थों में काण्ड के आरोपियों को थानों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए। पुलिस का एक सीनियर अफसर पहले मामले की जांच करके घटना और आरोपों की सत्यता के संबंध में आश्वस्त हो ले और उसके बाद ही गिरफ्तारी की कार्रवाई की जाय। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सही, लेकिन एकांगी है। मेरा मानना है कि उसका यह दिशानिर्देश सिर्फ एस.सी / एस.टी एक्ट के तहत दर्ज़ मामलों में ही नहीं, पुलिस में दर्ज़ सभी तरह के मामलों में लागू किया जाना चाहिए।

किसी भी घटना के बाद अगर विधि-व्यवस्था की कोई गंभीर समस्या नहीं खड़ी हो गई है तो सीनियर अफसर के पर्यवेक्षण और जिले के एस.पी के आदेश के बाद ही अभियुक्तों की गिरफ्तारी न्यायोचित है। थानों में भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह गिरफ्तारी की उनकी असीमित शक्ति ही है। यह अजीब चलन है कि एफ.आई.आर दर्ज़ होने के बाद पहले गिरफ्तारी की जाय और उसके बाद जांच। मतलब पहले सज़ा और फिर जांच। कहने की ज़रुरत नहीं कि जांच के पहले पुलिस द्वारा जल्दबाज़ी में गिरफ्तार किए गए ज्यादातर आरोपी जांच के बाद निर्दोष पाए जाते हैं। उनकी गलत गिरफ्तारी के लिए देश के कानून में मुआवज़े की कोई व्यवस्था नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि आरोप गलत होने के बावज़ूद अपनी गिरफ्तारी को जायज़ ठहराने या शर्मिंदगी से बचने के लिए पुलिस लोगों के ख़िलाफ़ काल्पनिक साक्ष्य के आधार पर भी आरोप पत्र दाखिल कर देती है।

एस.सी / एस.टी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट का संशोधन अमानवीय पुलिस व्यवस्था से लोगों को निकालने की एक छोटी-सी कोशिश है। यह कोशिश मुकम्मल तब होगी जब इसे पुलिस में दर्ज़ सभी मामलों में निष्पक्षता से लागू किया जाएगा।

(ध्रुव गुप्त के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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