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बिना ठोस जनसंख्या नियंत्रण नीति के मुर्गी बाज़ार बनने वाला है यह देश !

जनसंख्या अगर इसी अनुपात में बढ़ती रही तो न सिर्फ विकास के कामों के अपेक्षित नतीजे नहीं मिलेंगे, बल्कि घर-घर में और भाई-भाई में झगड़े बढ़ने वाले हैं।

New Delhi, Apr 17 : न मैं इस बात से सहमत हूं कि कांग्रेस-राज के 60 सालों में कोई काम नहीं हुआ, न इस बात से सहमत हूं कि मोदी-राज में पिछले 4 सालों से कोई काम नहीं हो रहा।सच्चाई यह है कि कांग्रेस को 60 साल में जितना करना चाहिए था, वह भी नहीं कर पाई और बीजेपी को पिछले 4 साल में जितना करना चाहिए था, वह भी नहीं कर पा रही।
इसकी पहली मुख्य वजह है- जाति और धर्म की राजनीति। जब जातियों और संप्रदायों का गणित भिड़ाकर सत्ता मिल जाए, तो काम पर ध्यान कौन देगा? और जब काम करके भी जातियों और संप्रदायों के गणित की वजह से सत्ता छिन जाए, तो भी काम पर ध्यान कौन देगा?

इसकी दूसरी मुख्य वजह है, देश में जनसंख्या-नियंत्रण की कोई पॉलिसी न होना। कोई भी सरकार चाहे कितने भी सुधारवादी कदम उठा ले, उनका अपेक्षित नतीजा तब तक नहीं निकलेगा, जब तक कि भारत सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जनसंख्या पर काबू नहीं पा लेता।
हालांकि इस दूसरी मुख्य वजह की भी असली वजह पहली वजह ही है- यानी जाति और धर्म की राजनीति। इसी की वजह से कोई भी सरकार जनसंख्या नीति नहीं बना पाती है। कुछ राजनीतिक दल और नेता यह मुद्दा उठाते ज़रूर हैं, लेकिन इसे उठाने का उनका तरीका बेहद संकीर्णता भरा और आपत्तिजनक होता है। इससे बात और बिगड़ जाती है।

अभी मेरे एक प्रबुद्ध मित्र बड़े उत्साहित हो रहे थे कि सरकार के टैक्स रिफॉर्म की वजह से आने वाले दिनों में देश में टैक्स बेस और कलेक्शन काफी बढ़ जाएगा और इसके परिणामस्वरूप टैक्स भी काफी कम हो जाएंगे- 5% तक।
उनकी बात पर मुझे हंसी आ रही थी, क्योंकि अगर सरकार में बैठे लोग ऐसा सपना दिखाते हैं तो यह जनता को बेवकूफ बनाने वाली बात है और अगर जनता स्वयं ऐसे सपने देख रही है तो यह मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में खोए रहने जैसी बात है।
जिस देश में हर 10 साल में करीब 20 करोड़ (पाकिस्तान या ब्राज़ील की कुल आबादी के बराबर) की आबादी जुड़ जाती हो, उस देश में अगर टैक्स बेस और कलेक्शन आपने थोड़ा बढ़ा भी लिया, तो कौन-सा तीर मार लेंगे?

टैक्स बेस और कलेक्शन अगर बढ़ेगा तो देश के ख़र्चे भी तो बढ़ रहे हैं। घर, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, रेल, बिजली, पानी, अनाज, कपड़े, रोज़गार, फैक्टरी- किस चीज़ की ज़रूरत कम या स्थिर होने वाली है कि टैक्स कलेक्शन बढ़ने से टैक्स कम करने का रास्ता खुल जाएगा?
इसलिए मुझे लगता है कि टैक्स बढ़ाने का फॉर्मूला तो सभी सरकारों के पास है, लेकिन उसे घटाने का फॉर्मूला किसी सरकार के पास नहीं है। बात बिगड़ती जा रही है। यह देश पटरी से उतरता जा रहा है। देश को अविलंब एक ठोस जनसंख्या-नियंत्रण नीति चाहिए।
जनसंख्या अगर इसी अनुपात में बढ़ती रही तो न सिर्फ विकास के कामों के अपेक्षित नतीजे नहीं मिलेंगे, बल्कि घर-घर में और भाई-भाई में झगड़े बढ़ने वाले हैं। जातियों और धर्मों के झगड़े तो बढ़ेंगे ही बढ़ेंगे। कम्युनिस्टों की भाषा में वर्ग-संघर्ष भी बढ़ेगा। यह मुल्क मुर्गी बाज़ार बन जाएगा।
क्या इस देश में कोई सरकार ऐसी आ सकती है, जो बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों-धर्मों के लोगों के लिए अर्थात संपूर्ण आबादी के लिए एक ठोस जनसंख्या नियंत्रण नीति ला सकती है?

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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