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‘विप्लव को बधाई कि उन्होंने अपने बयान पर अफसोस नही जताया बल्कि वे अड़े हुए हैं’

विप्लव ने कहा है कि इंटरनेट तो महाभारत काल में भी था। एन डी टी वी भी चटखारे ले रहा है।

New Delhi, Apr 21 : स्टीफन हॉकिन्स का हवाला देकर फेसबुक पर एक पोस्ट चल रहा है जिसमे त्रिपुरा के सी एम विप्लव देव के बयान की हंसी उड़ाई गयी है। विप्लव ने कहा है कि इंटरनेट तो महाभारत काल में भी था। एन डी टी वी भी चटखारे ले रहा है। विप्लव को बधाई कि उन्होंने अपने बयान पर अफसोस नही जताया बल्कि वे अड़े हुए हैं। पहले तो फेसबुक के उन विद्वानों ( लगभग सभी परिवर्तित ईसाई हैं) की जानकारी के लिए – स्टीफन होपकिन्स नही स्टीफन हॉकिन्स। श्रीमान जी लोग, अगर मुख्यमंत्री ने ऐसा कहा तो गलत क्या कहा? आप नही मानते हैं, नही जानते हैं तो यह आपका कसूर है न कि आरएसएस या बीजेपी का ।

हॉकिन्स ने क्या क्या कहा है और खुद ही उसको अस्वीकार भी किया है यह जानते हैं ? वह ईश्वर को नही मानते थे। लेकिन इस दुनिया मे कोई ऐसा समुदाय नही है जो ईश्वर को नही मानता। छह अरब लोग कही जीसस को ,कहीं अल्लाह को कही राम को ,कही बुद्ध को ,महावीर को, जूदाइज़्म ,जेविश किसी न किसी देवता को मानते हैं। ये सब तो संगठित धर्म हैं कबीलाई जिंदगी जीने वाले भी किसी ईश्वर को मानते हैं। कम्युनिस्ट ईश्वर को नही मानते। लेकिन ये कोई जातीय या धार्मिक समुदाय नही बल्कि राजनैतिक वर्ग है। लेकिन हॉकिन्स ने कह दिया तो ईश्वर नही है, यह क्या तर्क है। आइंस्टीन तो ईश्वर को मानते थे । वे भारतीय अध्यात्म को भी मानते थे।

भारत के आचार्यो ने दशमलव दिया, शून्य दिया इसे तो कोई विज्ञान चुनौती नही दे रहा है। लेकिन न्यूटन के सिद्धांतों को कई बार गलत भी ठहराया गया है। ऐसे में अगर एक पढ़ा लिखा व्यक्ति कहता है कि महाभारत के समय भी इंटरनेट था तो कोई गलत नही। विमान की बात पर लोग हँसते थे। लेकिन पुष्पक विमान के प्रमाण साफ दिखते हैं। त्रिकुट पर्वत में ऊपर जाइये, मानव निर्मित एयरपोर्ट दिख जाएगा। वेदों में विमान के एक एक उपकरण की चर्चा है। आप हर बात को ईसाई के खिलाफ, आरएसएस के प्रोपोगंडा से जोड़कर देखिएगा तो खुद के अलावा कुछ नही दिखेगा। भारतीय अध्यात्म विज्ञान का ऐसा समंदर है जिसे जिधर हांथ फेरिये कुछ न कुछ मिल ही जायेगा।

डार्विन ने कहा कि आदमी के पूर्वज बंदर थे। इस सिद्धांत को मानव शास्त्री कई बार चुनौती दे चुके हैं और इसे गलत भी घोषित किया है। लेकिन उनके तर्क अलग हैं डार्विन के तर्क अलग। लेकिन विज्ञान की व्यवस्था है कि किसी के प्रामाणिक सिद्धांत को यह कहकर खत्म नही किया जाता कि यह गलत है ।मार्जिन ऑफ एरर या पॉसिबलिटी के नाम पर वे सिद्धांत भी जीवित रहते हैं। इसका मतलब यह नही कि कोई सिद्धांत वैश्विक सत्य है । जानकर अचरज होगा कि किसी चर्च के पादरी ने हाल ही में दावा किया है कि पृथ्वी गोल नही है और वे इसे साबित करेंगे।
इसलिए इतना भी बेचैन मत होइए ,इतने भी उग्र मत होइए ,इतने भी पूर्वाग्रही मत होइए ,इतने भी आत्ममुग्ध मत होइए। बिप्लव पढ़े लिखे जानकार व्यक्ति हैं और कुछ कह रहे हैं तो अपने अध्ययन के आधार पर ही ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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