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चीन से बात में बुराई क्या है ?- V P Vaidik

चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज आदि नदियों के प्रवाह के बारे में भी आधिकारिक जानकारी भारत को देनी शुरु कर दी है।

New Delhi, Apr 25 : भारत और चीन के संबंधों को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री की इस चीन-यात्रा का (27-28 अप्रैल) कौन स्वागत नहीं करेगा ? मोदी की यह यात्रा सफल हो, इसके लिए क्या-क्या प्रयत्न पहले से नहीं किए गए ? विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित दोभाल और विदेश सचिव विजय गोखले पेइचिंग जाकर सारी चौपड़ जमा आए हैं।

इसके पहले दलाई लामा के भारत आगमन की षष्टि-पूर्ति के समारोहों का बहिष्कार करके भी भारत सरकार ने चीन को सदभाव-संदेश पठाया था। दोकलाम-विवाद भी भारत ने आगे होकर शांत कर लिया था। दोकलाम से भारत की वापसी के बाद चीन ने जो आक्रामक दावे किए थे, उन पर चुप्पी साध करके भारत ने बातचीत का माहौल तैयार किया था। उधर चीन ने भी कुछ अच्छे संकेत दिए थे।

चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पोलिट ब्यूरो के सदस्य वांग जेइची भारत आए और उन्होंने रचनात्मक रवैया अपनाया। China ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज आदि नदियों के प्रवाह के बारे में भी आधिकारिक जानकारी भारत को देनी शुरु कर दी है। इसके अलावा अभी-अभी China ने सिक्किम से नाथू ला मार्ग के जरिए मानसरोवर-यात्रा का रास्ता भी खोल दिया है। यों भी आजकल चीन और अमेरिका के संबंध तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। वह भी एक कारण हो सकता है, भारत से संबंध सुधारने का। उधर शी चिन फिंग और इधर नरेंद्र मोदी लगभग सर्वेसर्वा हैं। दोनों के बीच संवाद भी कायम है। कोई आश्चर्य नहीं की मोदी की इस यात्रा के दौरान ऐसे मुद्दों पर भी एक राय बन सकती है, जो तात्कालिक हैं और दूरगामी भी हैं।

तिब्बत, कश्मीर और सीमा-विवाद के मुद्दे- बरसों से चले आ रहे हैं और ओबोर महापथ, परमाणु सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता और मसूद अजहर का मामला जैसे मुद्दे तात्कालिक हैं। इतना ही नहीं, भारत-चीन व्यापार में 50 अरब डाॅलर से ज्यादा का असंतुलन है। भारत के पड़ौसी देशों में भी China का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। पता नहीं, इस मुद्दे को शी के साथ मोदी किस रुप में उठाएंगे ? दलाई लामा ने अभी-अभी कहा है कि तिब्बत को हम चीन का अंग मानते हैं बशर्ते कि उन्हें धार्मिक और सांस्कृति स्वायत्ता मिलती रहे। मोदी की चीन-यात्रा के संबंध में चीनी विदेश मंत्री ने बार-बार पाकिस्तान को भरोसा दिलाया है कि उसके साथ China की ‘इस्पाती दोस्ती’ है। यदि दोनों देशों के बीच कोई बुनियादी समझ पैदा हो जाए तो इस यात्रा का महत्व एतिहासिक हो जाएगा लेकिन वैसा होने का कोई स्पष्ट कारण दिखाई नहीं पड़ रहा है। इसके बावजूद बात करने में बुराई क्या है?

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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