New Delhi, May 24 : जिन्ना और टीपू सुल्तान के नाम उछालकर कर्नाटक चुनाव में जनता के असल सवालों को सफलतापूर्वक दबाने के बाद भाजपा ने नए मुद्दों की तलाश जारी रखी है। जनता देख रही है कि मध्य प्रदेश में गाैमांस के नाम पर भीड़ ने दो मुसलमानों की हत्या कर दी। गुजरात में एक दलित को पीट-पीटकर मार दिया गया। तमिलनाडु में पुलिस ने ग्यारह लोगों की हत्या कर दी। महँगाई लगातार बढ़ती जा रही है। लोकतंत्र को कंपनीतंत्र में बदला जा रहा है।
इन तमाम मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पादरी की चिट्ठी का सहारा लिया जा रहा है और कहा जा रहा कि हिंदू ख़तरे में हैं।
हम वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, इसका यह मतलब तो नहीं कि हमने अपनी पूरी ज़िंदगी, मनुष्य होने के विचार और ज़मीर को उस नेता या दल के नाम कर दिया। लेकिन कुछ लोग इस दुविधा में फँस जाते हैं कि एक बार समर्थन कर दिया तो अब हर हाल में उसके हर जनविरोधी फ़ैसले का बचाव करना पड़ेगा। लोग कई बार सरकार और नेता की भक्ति को ही समाज और देश की भक्ति समझ लेते हैं पर ऐसा होता नहीं है। नेताओं की भक्ति से समाज और देश को कोई लाभ नहीं मिलता क्योंकि नेता देशहित में काम करे इसके लिए उसकी भक्ति नहीं, बल्कि उसके सामने अपनी बात रखना ज़रूरी होता है।
याद रखिए, आप नेता का चुनाव मुद्दों के आधार पर करते हैं। यदि नेता उन मुद्दों को भूल जाए तो ऐसे में उसका नाम जपना ग़लत है और यह भक्ति नहीं, चमचागीरी है।
लड़ेंगे, जीतेंगे।
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