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दाल और मोकामा टाल

बिहार में मोकामा टाल के किसानों ने इसी महीने की 28 तारीख को बंदी का ऐलान किया है. वे सड़क मार्ग, रेल मार्ग और सरकारी दफ्तर बंद करायेंगे।

New Delhi, May 24 : इन दिनों जब आप पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत पर सवाल करेंगे तो सरकार के मुफ्तिया सिपाही आपको दाल की कीमतों का हवाला देंगे. वे कहेंगे कि दाल सस्ती है, यह नहीं दिखता, पेट्रोल महंगी हो गयी उस पर शोर मचाने लगते हैं. यह सच है कि कभी दो सौ रुपये किलो बिकने वाली दाल 60-70 रुपये किलो बिक रही है. कुछ दालों की कीमत तो 50 रुपये तक पहुंच गयी है. मगर किसकी कीमत पर… ?

आप नहीं समझ रहे तो आइये आपको एक खबर सुनाते हैं. बिहार में मोकामा टाल के किसानों ने इसी महीने की 28 तारीख को बंदी का ऐलान किया है. वे सड़क मार्ग, रेल मार्ग और सरकारी दफ्तर बंद करायेंगे. वजह दाल की घटती कीमत है. कई सालों बाद बिहार के किसानों के इस तरह सड़क पर उतरकर आंदोलन करने की खबर सामने आयी है. जो लोग मोकामा की भौगोलिक स्थिति से परिचित हैं, वे समझते होंगे कि इस बंदी का मतलब क्या है. करीब 100 किलोमीटर क्षेत्र के दर्जनों गांवों के लोग सड़क पर प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं. किसानों की इस महाबन्दी से बिहार की रफ्तार थम जाएगी. उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़ने वाला राजेन्द्र सेतु पूरे दिन बन्द रहेगा. पूर्व और पश्चिम बिहार भी सड़क और रेल सम्पर्क से पूरी तरह कटा रहेगा.

क्यों गुस्से में हैं मोकामा टाल के किसान? दलहन इस इलाके की प्रमुख फसल है और इसकी खेती से ही इन किसानों का जीवन चलता है. किसानों का यह प्रदर्शन दलहन फसलों की उचित कीमत न मिलने के विरोध में है. पिछले साल केंद्र सरकार ने दलहन फसलों का न्यूनतम मूल्य तय कर दिया था. यह चार हजार से चौवालिस सौ रुपये प्रति क्विंटल के बीच है. मगर बाजार में जिस तरह दाल 50 से 70 रुपये किलो बिक रहा है, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि किसानों की दाल की कितनी कीमत मिलती होगी. किसान बताते हैं कि दलहन की सरकारी खरीद तो बिहार में कहीं नहीं होती है, उन्हें तो इस न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी एक हजार रुपये कम में खुले बाजार में दाल बेचना पड़ रहा है.

मसूर और चना का मौजूदा बाजार भाव 3500 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि खेती का लागत मूल्य डेढ़ से दोगुना तक है. ऐसा इसलिए हुआ कि भारत सरकार ने मोजाम्बिक सहित कुछ देशों के साथ वर्ष 2022 तक के लिए दाल आयात का करार कर लिया है, इससे देश के दलहन किसानों की हालत खस्ता हो गयी है. दिलचस्प है कि पिछले साल जब दाल की कीमतें आसमान पर थीं तो सरकार ने किसानों को प्रोत्साहित करके उनके दाल की खेती करवायी थी. लाभ की उम्मीद में खेती करने वाले किसान अब घाटे के फेर में पड़ गये हैं. वजह सरकारी नीति है. और सरकारी खरीद की व्यवस्था का न हो पाना भी.
स्थिति इतनी विकट है करीब 6.5 लाख बीघा वाले मोकामा बड़हिया टाल के कई किसानों ने पिछले दो साल से अपनी फसल को नहीं बेचा है. अब आप दाल के सस्ते होने का क्रेडिट लूटिये और पब्लिक में अपनी छवि चमकाइये. इधर किसान सड़क पर उतरने को मजबूर हैं. यही स्थिति गन्ना किसानों की भी है. बिहार जैसे राज्य में किसान आंदोलन के लिए एकजुट हो रहे हैं, यह सामान्य बात नहीं है.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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