New Delhi, Jun 12 : अफसरशाही में लेटरल एंट्री यानि सिविल सर्विस से इतर विशेषज्ञों को लाना कोई नयी बात नहीं है, फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार कुछ पद उनके लिए आवंटित करके संयुक्त सचिव स्तर पर तैनाती की जा रही है. अभी ये स्पष्ट नहीं है की ये पद नए बने हैं या विभिन्न काडर पदों से निकाले गए हैं. अगर ये पद अन्य काडरों से लिए गए हैं तो फिर तो इनका भगवान ही मालिक है.
सचिव, अतिरिक्त सचिव और संयुक्त सचिव स्तर पर पहले भी सिविल सर्विस से इतर लोगों को लिया जाता रहा है. वित्त और वाणिज्य मंत्रालयो में तो ये अक्सर होता है.
समस्या ये है कि क्या वर्तमान अफसरशाही उन्हें काम करने देगी. हालाँकि नए पदों के लिए रूल बना दिए गए हैं लेकिन मेरा अपना अनुभव बताता है कि अफसरशाही के विभिन्न काडर अपने अपने पदों को जाती मिलकियत समझने लगते हैं और बाहर के लोगों को काम नहीं करने देते. ऐसे ऐसे रोडे अटकाते हैं कि ज़्यादातर एक्सपर्ट्स चुप चाप निकल लेने में ही भलाई समझते हैं. गाँठ बांध लीजिये जब ये नए एक्सपर्ट्स आएंगे न, तो सिविल सर्विस के विभिन्न काडर आपसी मतभेद भूलकर इन्हे फेल करने में जुट जाएंगे. इस काम में वो बड़ी बेशर्मी के साथ मीडिया का भी इस्तेमाल करेंगे. प्रधान मंत्री और मंत्रियो के सामने इनकी तारीफ होगी और पीठ पीछे सारे कैडर एक होकर इनकी जड़ों में मट्ठा डाल रहे होंगे. और ख़ुदानाख़स्ता २०१९ में कुछ ऊँच नीच हो गया तो फिर तो इनका भगवान ही मालिक है. कमरा, गाड़ी, डंडा, झंडा सब एक दिन में छिन जायेगा.
ये बात मै अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ. १९८८ में राजीव गाँधी के टाइम दूरदर्शन को प्रोफेशनल बनाने के लिए जो लेटरल एंट्री कि गयी थी उनमे अपन भी थे. सुमन दुबे अडिशनल सेक्रेटरी के समकक्ष लाये गए थे, करन थापर संयुक्त सचिव स्तर पर और हम दस- बारह सीनियर पत्रकार अंडर सेक्रेटरी के पद पर. तीस एक पत्रकार जूनियर भी थे पर सभी क्लास वन श्रेणी में थे. दुबे और थापर के सिवाय बाकी सभी एक व्यापक लिखित परीक्षा और फिर इंटरव्यू के जरिये लिए गए थे, जिसमे लाखो अभ्यर्थी शामिल हुए थे.इसके बावजूद सिविल सर्विस, खासकर आईआईएस वालों ने ऐसा हंगामा काटा था कि पूछो मत. इसलिए कहता हूँ कि जो नए लोग आएंगे उनकी राह आसान नहीं होगी. हम पर क्या बीती इस बारे में फिर कभी. इस समय ये मनाईये कि मोदी जी का ये उपक्रम सफल हो. ये अच्छी पहल है
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