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अपनी ही अदालत में मुकदमा हारते खड़े अटल, लेकिन कभी उफ्फ ना किया

‘हमारे मित्र जेठमलानी को चुप रहने की कला नहीं आती।’ बस अटल जी का इतना कहना भर था कि जेठमलानी चुप हो गए थे।

New Delhi, Jun 13 : एक बार की बात है। अटल जी लखनऊ आए थे। उन से मिलने वालों की कतार लगी थी। मैं भी उन से इंटरव्यू करने के लिए पहुंचा हुआ था। इंतज़ार में मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता भी थे। बलिया के एक विधायक भरत सिंह भी थे। मंत्री पद की आस में। और भी कुछ लोग थे। भरत सिंह को जब मालूम हुआ कि मैं पत्रकार हूं और अटल जी से इंटरव्यू की प्रतीक्षा में हूं तो वह लपक कर मिले। वह चाहते थे कि अटल जी के सामने उन की अच्छी छवि प्रस्तुत हो जाए। उन्हों ने अपना परिचय दिया, ‘माई सेल्फ़ भरत सिंह।’ मैं ने छूटते ही पूछा कि बलिया वाले न?’ वह बोले,’ हां।’ मैं ने बताया उन्हें कि जानता हूं आप को आप की अंगरेजी की वज़ह से। जब आप बी.एच. यू. में बतौर छात्र संघ अध्यक्ष बोलते थे। आई टाक तो आइऐ टाक, यू टाक तो यूऐ टाक, डोंट टाक इन सेंटर-सेंटर !’ सुन कर भरत सिंह सकपकाए। पर मुरली मनोहर जोशी ठठा कर हंसे।

इसी बीच उन्हें अटल जी ने बुलवा लिया। वह हंसते हुए अंदर पहुंचे तो अटल जी ने उन से हंसने का सबब पूछा। उन्हों ने मेरा और भरत सिंह का वाकया बताया। और कहा कि पत्रकार को ही बुला कर पूछ लीजिए। अटल जी ने मुझे भी बुलवा लिया। और पूछा कि किस्सा क्या है? तो मैं ने कहा कि भरत सिंह से सीधे सुनिए। सेकेंड हैंड संवाद सुनने से क्या फ़ायदा? भरत सिंह भी बुला लिए गए। पर भरत सिंह नो सर, नो सर, सारी सर, सारी सर, करते रहे, बोले कुछ नहीं। खैर भरत सिंह मुझे आग्नेय नेत्रों से देखते हुए विदा हुए। कि तभी लाल जी टंडन आ गए। एक डिग्री कालेज के उदघाटन का न्यौता ले कर। कि अटल जी उस का उदघाटन कर दें। अटल जी ने वह न्यौता एक तरफ रखते हुए टंडन जी से कहा कि यह उदघाटन तो आप खुद देख लीजिएगा। और अपनी ज़ेब से एक पर्ची निकाल कर उन्हें निशातगंज की गली और मकान नंबर सहित खड़ंजा और नाली के व्यौरे देने लगे। हैंडपंप के बारे में बताने लगे। और कहा कि मार्च का महीना है और हैंडपंप से पानी नदारद है। मई-जून में क्या होगा? पानी नदारद है और नाली चोक है, सड़कें खराब हैं, बरसात में क्या हाल होगा? यह और ऐसे तमाम व्यौरे देते हुए अटल जी ने कहा कि, टंडन जी वोट मिलता है, नाली, खडंजा, सड़क ठीक होने से और हैंडपंप में पानी रहने से, डिग्री कालेज के उदघाटन से नहीं।’ और सारी लिस्ट देते हुए भरपूर आंखों से तरेरते हुए कहा कि टंडन जी आगे से यह शिकायत नहीं मिले।’ जी, जी कह कर टंडन जी उलटे पांव लौट गए। बैठे भी नहीं।

उस दिन मुझे समझ में आया था कि अटल जी लखनऊ में सब की ज़मानत ज़ब्त कराते हुए हर बार रिकार्ड वोटों से कैसे जीत जाते हैं। मुसलमानों तक के रिकार्ड वोट उन्हें मिलते रहे हैं। और तो और बाद के दिनों में तो बीते चुनाव में जब टंडन जी खुद लखनऊ लोकसभा से चुनाव में उतरे तो अटल जी की चिट्ठी ले कर ही चुनाव प्रचार करते दिखे। तब भी जितने मार्जिन से अटल जी जीतते थे, टंडन जी जीत कर भी उन के मार्जिन भर का वोट भी नहीं पा पाए। ऐसे ही एक बार राम जेठमलानी भी अटल जी के खिलाफ़ लखनऊ से चुनाव में उतरे। बोफ़ोर्स के समय में वह रोज जैसे राजीव गांधी से पांच सवाल रोज़ पूछते थे, अटल जी से भी पूछने लगे थे, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में थे ही। तब जब कि वह अटल जी के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री रह चुके थे और एक विवाद के चलते उन्हें इस्तीफ़ा देना पडा़ था।

उसी की कसर वह चुनाव में रोज़ सवाल पूछ कर निकाल रहे थे। उन के तमाम सवालों के जवाब में अटल जी ने एक दिन अपना हाथ घुमाते हुए बस एक ही बात कही थी कि, ‘हमारे मित्र जेठमलानी को चुप रहने की कला नहीं आती।’ बस अटल जी का इतना कहना भर था कि जेठमलानी चुप हो गए थे। और लखनऊ से अंतत: ज़मानत गंवा कर लौट गए। ऐसे जाने कितने किस्से अटल जी के हैं। अब अलग बात है कि उन्हीं कांग्रेस पलट जेठमलानी, जो विवादित बयान देने और हत्यारों को ज़मानत दिलाने के लिए ज़्यादा जाने जाते हैं, को भाजपा ने फिर से राज्यसभा में बैठा दिया। पर वाजपेयी ने कभी उफ़्फ़ भी नहीं किया।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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