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सीएम और सरकार का काम जनता को रुलानेवालों को रुलाना है, न की खुद रोना

सुजात के घर पहुंची महबूबा बोलते-बोलते रो पड़ीं। ऐसे ही एक बार पर्यटकों की हत्या पर तबके सीएम गुलाम नबी आजाद भी रोये थे। आखिर जेके के सीएम क्या सिर्फ रोते ही रहेंगे ?

New Delhi, Jun 15 : वे रोजे में थे, इफ्तार के लिए जा रहे थे लेकिन रोजा खोलने के पहले ही आतंकियों ने उन्हें मार डाला। वे सुजात बुखारी थे, श्रीनगर से अपना अखबार निकालते थे-राइजिंग कश्मीर। हमले में उनके दो सुरक्षाकर्मी भी मारे गए। वे एक बेहद निडर और सामाजिक सरोकार रखनेवाले पत्रकार थे। एक बार उनसे मिलना हुआ था। हसमुख और मिलनसार थे। पाक परस्त आतंकियों के खिलाफ थे। कश्मीर में शांति के पक्ष में लिखते और बोलते थे। यही उनकी मौत का कारण बना।

जिस रमजान की दुहाई देकर जेके की सीएम महबूब मुफ़्ती ने फौज के हाथ बंधवाए थे, वही रमजान सुजात की मौत का कारण बना। आतंकियों के पक्ष में लिखनेवाले पत्रकार और बोलने वाले नेताओ के पास इस हत्या का कोई जवाब है ? सुजात के घर पहुंची महबूबा बोलते-बोलते रो पड़ीं। ऐसे ही एक बार पर्यटकों की हत्या पर तबके सीएम गुलाम नबी आजाद भी रोये थे। आखिर जेके के सीएम क्या सिर्फ रोते ही रहेंगे ? रोने के लिए तो वहां की जनता है ही ! सीएम और सरकार का काम जनता को रुलानेवालों को रुलाना है, न की खुद रोना। राजनाथ सिंह, राहुल गांधी, उमर अब्दुल्ला जैसे बड़े नेता सुजात को बहादुर पत्रकार बता कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

बेशक सुजात बहादुर पत्रकार थे, उन्होंने बहादुरी से मौत का वरण किया। लेकिन सवाल यह है कि ये राजनेता कब बहादुरी दिखाएंगे ? कबतक इन पिद्दी आतंकियों के हाथों जनता, पत्रकार और फौज की बलि देते रहेंगे ? आज भी एक जवान का अपहरण कर मार डाला गया। शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब जेके में दो-चार जवान या लोग न मारे जाते हों। गली के लड़के पत्थर बरसाते हैं और फौज के जवानों को भागते पूरा देश टीवी स्क्रीन पर रोज देखता है। जब पत्थरबाजों को गिरफ्तार किया जाता है तो सरकार उन्हें रिहा कर देती है। सेना जब कार्रवाई करती है तो उसपर मुकदमे लाद दिये जाते हैं। ऐसा लगता है कि दिल्ली से लेकर श्रीनगर तक की सरकार आतंकियों के पक्ष खड़ी है। ऐसा कबतक दिखता रहेगा मालूम नहीं। आज जवानों की शहादत पर पूरा देश रोता है। सुजात की शहादत पर पत्रकार बिरादरी के साथ महबूबा भी रो रही हैं। लेकिन याद रखिये महबूबा जी , अगर यह सिलसिला नहीं रुका तो कल आपके लिए कोई रोनेवाला भी नहीं रहेगा ।

जाओ सुजात बुखारी, जाओ, यह कश्मीर तुम जैसे लोगों के लिए शायद नही है। क्योंकि तुम इंसान थे, कश्मीर हैवानों के चंगुल में है। तुम शांति चाहते थे, लेकिन कश्मीरी खून बहता देखना चाहते हैं। उनके कान बमों और गोलियों की आवाज के अभ्यस्त हो चले हैं। बारूद की गंध उनके नाकों को भाने लगा है। पर तुम तो शांति की सरगम सुनना चाहते थे सुजात ? शांति चाहनेवालों का शायद कश्मीर में यही अंजाम है। जिस कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता था, आज वो नर्क बन चुका है। इसलिए तुम्हारा जाना ही ठीक है। श्रद्धांजलि मेरे दोस्त…फिर मुलाकात होगी जब कश्मीर में अमन होगा, तब तुम फिर आना…

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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